Sampurna Soorsagar : Vols. 1-5

Author: Soordas
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Sampurna Soorsagar : Vols. 1-5
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अष्टछाप वाले प्रसिद्ध सूरदास, महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य थे। यह जन्मान्ध थे जो दिल्ली और मथुरा के बीच जनमेजय के नागयज्ञ स्थल पर सीही में पैदा हुए थे। इनका जीवन-काल सम्भवत: सं. 1535 से 1640 वि. है। यह परसौली में रहते थे और गोवर्धनगिरि पर स्थापित श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तन किया करते थे। यह स्वयं 'सूरसागर' कहे जाते थे और इनके कीर्तन पदों का संग्रह भी 'सूरसागर' कहलाया। इसमें केवल 'कृष्णलीला' के पद हैं। यह कृष्ण लीलात्मक ‘सूरसागर’ है। इसके प्रथम खंड में विनय के पद, गोकुल लीला एवं वृंदावन लीला के कुल 1100 पद हैं। डॉ. के इस महा कार्य ने सूर सम्बन्धी समय-समय पर उठी सभी समस्याओं का समाधान कर दिया है। एक अनुपम और अद्वितीय टीका के साथ बेहद महत्त्वपूर्ण कृति।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2005
Edition Year 2024, Ed. 4th
Pages 621p
Translator Not Selected
Editor Kishori Lal Gupt
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 18.5
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Author: Soordas

सूरदास

परिचय

जन्म : 1478 ईसवी, सीही, फरीदाबाद, हरियाणा (सूरदास की जन्म तिथि व जन्म स्थान के बारे में कुछ अन्य मत भी प्रचलित हैं।)

भाषा : ब्रज भाषा

मुख्य कृतियां

सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयंती, ब्याहलो

(इन ग्रंथों में से अंतिम दो वर्तमान में अप्राप्य हैं। नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के सोलह ग्रंथों का उल्लेख है। इनमें सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयंती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी आदि ग्रंथ सम्मिलित हैं। इनमें प्रारंभ के तीन ग्रंथ ही महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।)

निधन

1581, पारसौली, उत्तर प्रदेश

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