Prim Se Jopa Karun

Author: Adarsh Agarwal
Edition: 2014, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Prim Se Jopa Karun

किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले सभी विघ्नों को दूर करनेवाले गणपति जी महाराज को आमंत्रण देते गीत। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म, बचपन और किशोर उम्र का वर्णन करती सुन्दर रचनाएँ। श्रीराधा-श्रीकृष्ण के ईश्वरीय मिलन और अद्भुत प्रेम से जुड़े भक्ति गीत। माँ जगदम्बे भवानी को समर्पित हिन्दी और पंजाबी में रचित भेंट। युगों-युगों से गूँजता गंगा मैया की आरती के बोल। पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक सम्बन्धों, शुद्ध आचरण पर रोशनी डालता नानी-दादी का आराधना संदूकचा। नित्य हर घर में गाए जानेवाले आरती गीत।

लगभग दो सौ भजनों और आरती गीतों को बिलकुल नई रचनात्मक शैली में गूँथती यह कृति हर उस घर के लिए संग्रहणीय है, जहाँ ईश्वरीय प्रेम के दीप जलते हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 307p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21 X 14 X 2.5
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Adarsh Agarwal

Author: Adarsh Agarwal

आदर्श अग्रवाल

जन्म : 27 नवम्बर, 1937। छोटी उम्र की ही थीं कि ईश्वरीय प्रेम में रंग गईं। ननिहाल ब्रजभूमि में था। नाना के घर मथुरा जातीं तो उन्हें सदा भगवद्गीता, नाम-जप और आराधन के पवित्र स्वर सुनाई देते। पिताश्री की आर्यसमाज के प्रति अगाध श्रद्धा थी। उनकी संगरूर की बड़ी हवेली में हर पारिवारिक आयोजन में हवन के साथ-साथ वैदिक मंत्रों और श्लोकों का विधिवत् उच्चारण होता।  

ईश्वरीय भक्ति से ओत-प्रोत इस परिवेश ने उनके अंतः करण पर गहरी छाप डाली। स्कूल-कॉलेज के दिनों में उन्होंने कान्हा की कई सशक्त वॉटर कलर पेंटिंग्स बनाईं। रणवीर गवर्नमेंट कॉलेज, संगरूर से अर्थशास्त्र (इकोनॉमिक्स) में बीए की। 

16 फरवरी, 1957 के दिन उनका श्री सतप्रकाशजी अग्रवाल से विवाह हो गया। पति बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से इंजीनियर थे, बड़े जेठ प्रख्यात डॉक्टर और सास-श्वसुर सहित समस्त अग्रवाल परिवार अध्ययनशील तो था ही, साथ ही शिक्षा, सामाजिक सेवा और ईश्वरीय प्रेम के प्रति गहरा समर्पित था। सतप्रकाशजी को गंगा मैया और देवभूमि से अटूट लगाव था। परिवार के साथ दोनों हर बरस हरिद्वार-ऋषिकेश की यात्रा करते, परमार्थ निकेतन में रुकते, सुबह-शाम आरती में भाग लेते, गंगा के किनारे बालूतट पर बैठे भिक्षु साधु-बाबाओं से आशीष लेते और गंगाजी की आरती की मंत्रमुग्ध कर देनेवाली छवियों को अपने भीतर समा फूलों और दीयों से सजी छोटी-छोटी नौकाओं को गंगा मैया की लहराती गोद में उतार खुशी पाते। कालांतर में दोनों ने वाराणसी, प्रयाग, माउंट आबू, कन्याकुमारी, भुवनेश्वर, कोणार्क, उदयगिरि, नंदगिरि, कटरा सहित आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों धामों की यात्रा की, जिनमें बदरीनाथ के साथ केदार धाम की दुर्गम यात्रा भी शामिल थी।   

आदर्श जी के अनुसार भजन, दोहे, लोकगीत और आराधन-गीत भारत की लोक-श्रवण परंपरा का अटूट हिस्सा हैं। इनमें देश की संस्कृति की खुशबू बसी है। ये संगीतमय अभिव्यक्तियाँ भारतीय लोकमानस की सनातन श्रद्धा का प्रतीक हैं और विश्वास-आस्था का सुर संगम हैं।

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