Nirala Ke Srajan Simant

Author: Archana Verma
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Nirala Ke Srajan Simant

इस किताब की प्रमुख कोशिश निराला को उनकी अपनी भूमि पर देखने और समझने की है, इस आस्था के साथ कि यह अपने आप को भी समझने की शुरुआत है, अपनी परम्परा और अपनी परम्परा की आधुनिकता को।

जिस दुनिया में खड़े होकर आज हम निराला की परम्परागत आधुनिकता को देखते हैं, वह उनकी मूल्यचेतना की सार्थकता और प्रासंगिकता की गवाही स्वयं देती है। जिसे वे जड़वादी दृष्टि कहते थे, उसकी यात्रा की दिशा को वे दूर तक देख और समझ सकते थे। उसके विपक्ष में वे आत्मवाद के साथ खड़े थे तो इसलिए कि वे मानते थे कि अनियंत्रित उपभोग की वह जड़वादी दिशा ही विनाश की है।

‘कुकुरमुत्ता’ में निराला ने कुकुरमुत्ता के ख़ात्मे से उसी अन्त की ओर तथा ‘खजोहरा’ में अपनी ही खुजली से कूदती, फाँदती, भगाई मचाती जड़वादी दृष्टि यानी माया की उपचारहीन जलन की ओर इशारा किया है।

अब उनकी सार्थकता और प्रासंगिकता के बार-बार आविष्कार का समय है। उस दिशा में यह छोटी-सी कोशिश उनकी कविताओं में व्यक्त संसार को मूल रूप से उनके अपने ही निबन्धों, कहानियों, समीक्षाओं आदि में निहित विचारों के सहारे सत्यापित करने की है क्योंकि इससे एक तो उनका अपना मन्तव्य प्रमाणित होता है, दूसरे, आधुनिक आलोचना के पास निराला को जाँचने के लिए ‘अन्तर्विरोध’ के अलावा और कोई अवधारणा न होने के कारण, और उस अवधारणा से मूलतः असहमत होने के कारण लेखिका के पास और कोई उपयुक्त कसौटी नहीं बचती।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2005
Edition Year 2005, Ed. 1st
Pages 251p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2
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Archana Verma

Author: Archana Verma

अर्चना वर्मा

जन्म : 6 अप्रैल, 1940

कवि, कथाकार-आलोचक अर्चना वर्मा दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा कॉलेज में हिन्दी विभाग में प्राध्यापक थीं।

वे 22 वर्षों तक ‘हंस’ से जुड़ी रहीं। ‘कथादेश’ पत्रिका में भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। ‘निराला के सृजन सीमान्त’ और ‘अस्मिता विमर्श का स्त्री-स्वर’ आलोचना की महत्त्वपूर्ण पुस्तकें।

दो कहानी-संग्रह (स्थगित, राजपाट और अन्य कहानियाँ) और दो कविता-संग्रह (कुछ दूर तक, लौटा है विजेता) प्रकाशित हैं।

निधन : 16 फरवरी, 2019

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