Mewat Ka Johad

Environment Books,Nobel Award
Author: Rajendra Singh
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Mewat Ka Johad

मेवात कैसे बना? मेवात का जनमानस आज क्या चाहता है? क्या कर रहा है? मेवात के संकट से जूझते लोग, बाज़ार की लूट, पानी और खेती की लूट रोकने की दिशा में हुए काम–––क़ुदरत की हिफ़ाज़त के काम हैं। इन क़ुदरती कामों में आज भी महात्मा गांधी की प्रेरणा की सार्थकता है। युगपुरुष बापू के चले जाने के बाद भी युवाओं द्वारा उनसे प्रेरित होकर ग्राम स्वराज, ग्राम स्वावलम्बन के रचनात्मक कार्यों से लेकर सत्याग्रह तक की चरणबद्ध दास्तान इस पुस्तक में है।

यह पुस्तक देश–दुनिया और मेवात को बापू के जौहर से प्रेरित करके सबकी भलाई का काम जोहड़ बनाने–बचाने पर राज–समाज को लगाने की कथा है; जौहर से जोहड़ तक की यात्रा है। यह पुस्तक आज के मेवात का दर्शन कराती है। इसमें जोहड़ से जुड़ते लोग, पानी की लूट रोकने का सत्याग्रह, मेवात के 40 शराब कारख़ाने बन्द कराना तथा मेवात के पानीदार बने गाँवों का वर्णन है।

मेवात के पानी, परम्परा और खेती का वर्णन बापू के जौहर से जोहड़ तक किया गया है। बापू क़ुदरत के करिश्मे को जानते और समझते थे। इसलिए उन्होंने कहा था, “क़ुदरत सभी की ज़रूरत पूरी कर सकती है लेकिन एक व्यक्ति के लालच को पूरा नहीं कर सकती है।” वे क़ुदरत का बहुत सम्मान करते थे। उन्हें माननेवाले भी क़ुदरत का सम्मान करते हैं। मेवात में उनकी कुछ तरंगें काम कर रही थीं। इसलिए मेवात में समाज–श्रम से जोहड़ बन गए। मेवात में बापू का जौहर जारी है। यह पुस्तक बापू के जौहर को मेवात में जगाने का काम करती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2012, Ed. 1st
Pages 180p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Rajendra Singh

Author: Rajendra Singh

राजेन्द्र सिंह

समृद्ध किसान के घर 6 अगस्त, 1959 में जन्मे राजेन्द्र सिंह 12 वर्ष की आयु में ही सामाजिक कार्यों में जुट गए थे। अपने विद्यार्थी जीवन में ही सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन से जुड़ने के बाद इन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर 1980 से भारत सरकार के नेहरू युवक केन्द्र, जयपुर में 4 वर्ष तक कार्य किया।

1985 में राजस्थान के सूखे और उजड़े क्षेत्र थानागाजी के गोपालपुरा में जल संरक्षण कार्य शुरू करके मिट्टी का कटाव रोकने और धरती का पेट पानी से भरने में जुट गए। इन्होंने इस तरह की जल संरचनाओं का निर्माण किया जिनमें जल का वाष्पीकरण न हो और धरती का पेट पानी से भरकर जलस्तर ऊपर आए। यह सारा काम मेवात क्षेत्र में किया गया है। इस क्षेत्र की 7 नदियों—अरवरी, रूपारेल, साबी, जहाजवाली, महेश्वरा, भगाणी एवं सरसा को पुनर्जीवित करने में अपना जीवन लगाया है।

गाँव स्तर पर जल-सभा, ग्राम-सभा संगठित की, पूरे नदी क्षेत्र में नदी संगठन बनाए। इन संगठनों ने एक तरफ़ वर्षा जल का संरक्षण किया और दूसरी तरफ़ इस जल का अनुशासित उपयोग करना सिखाया।

ये वर्षा जल को संरक्षित करने और नदी को पुनर्जीवित करनेवाले समाज के साथ सदैव जुड़े रहे हैं। दिल्ली में यमुना नदी की भूमि पर हो रहे अतिक्रमण को रोकने के लिए सत्याग्रह किया। आजकल गंगा नदी की अविरलता और निर्मलता हेतु संघर्षरत हैं। भारत सरकार के नदी जोड़ योजना के पर्यावरण विशेषज्ञ समिति एवं योजना आयोग के अन्तर मंत्रालय गंगा समूह और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के सदस्य हैं।

सम्मान : 2001 में जल संरक्षण के लिए सामुदायिक नेतृत्व के क्षेत्र में एशिया का प्रतिष्ठित ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’। 2005 में ‘जमनालाल बजाज पुरस्कार’।

सम्प्रति : अध्यक्ष, ‘तरुण भारत संघ’।

ई-मेल : jalpurushtbs@gmail.com

 

 

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