Mallika Samagra

Author: Mallika
Editor: Rajkumar
Edition: 2021, 1st Ed.
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Mallika Samagra
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बहुमुखी प्रतिभा की धनी एवं स्वतंत्रचेता मल्लिका आधुनिक हिन्दी साहित्य के आरम्भिक दिनों की एक महत्त्वपूर्ण, लेकिन उपेक्षित शख़्सियत हैं। अकसर उनका उल्लेख भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की प्रेयसी (धर्मग्रहीता) और उनकी बौद्धिक सहायक के रूप में किया जाता है जबकि एक रचनाकार के रूप में उनकी स्वतंत्र पहचान को स्वीकार किया जाना और उनके योगदान का यथोचित मूल्यांकन अब भी शेष है।

उन्होंने कई उपन्यास लिखे। गीतों और लेखों की रचना की। पत्रिकाओं के सम्पादन-प्रकाशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई—बालाबोधिनी में उनकी भूमिका तो थी ही, रहस्य चन्द्रिका पत्रिका का भी उन्होंने स्वतंत्र रूप से प्रकाशन किया। यही नहीं, उन्होंने मल्लिका चन्द्र एंड कम्पनी चलाने की ज़िम्मेदारी का भी निर्वाह किया। सम्भवतः उन्नीसवीं सदी में लेखन करनेवाली हिन्दी-क्षेत्र की वह अकेली स्त्री हैं जो लेखन के साथ-साथ प्रकाशन-सम्पादन में सक्रिय दिखाई देती हैं। बांग्ला और हिन्दी के बीच अपने लेखन से एक सेतु बनाने का उनका प्रयास भी उल्लेखनीय है। इस परिप्रेक्ष्य में मल्लिका के योगदान का सम्यक् मूल्यांकन हिन्दी-क्षेत्र के पुरुष-केन्द्रित साहित्यिक-सांस्कृतिक इतिहास को दुरुस्त करने के लिए ज़रूरी है। वास्तव में मल्लिका के बिना न तो उन्नीसवीं सदी के कथित ‘हिन्दी नवजागरण’ की कहानी पूरी हो सकती है, न ही उस नवजागरण के प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की।

उम्मीद है, मल्लिका की समस्त उपलब्ध रचनाओं का यह प्रामाणिक संकलन इस ज़रूरत को पूरा करेगा।

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2021
Edition Year 2021, 1st Ed.
Pages 264p
Translator Not Selected
Editor Rajkumar
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Author: Mallika

मल्लिका

मूल रूप से बंगाल की लेकिन जन्मस्थान और निश्चित जन्मतिथि अज्ञात। बाद में वाराणसी में निवास। यह स्पष्ट नहीं है कि वाराणसी कब आईं। सम्भवतः बाल विधवा होने के कई वर्षों बाद यहाँ आईं या लाई गईं और परिस्थितिवश यहीं रह गईं।

वाराणसी में ही अनुमानतः 1873 या इससे कुछ वर्ष पहले अपने समवयस्क भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से सम्पर्क हुआ। फिर उनके बीच प्रेम सम्बन्ध बना जिसका गहरा प्रभाव दोनों के रचनात्मक जीवन पर पड़ा। भारतेन्दु के असमय निधन के कुछेक वर्षों बाद निराधार होकर वाराणसी से वृन्दावन जाने को विवश हुईं। इसके बाद उनके बारे में कुछ पता नहीं चला।

उनकी कृतियों में राधारानी, सौन्दर्यमयी, पूर्णप्रकाश चन्द्रप्रभा, पारस्य, कुमुदिनी तथा निराभिमानदानी उपन्यास प्रमुख हैं। गीत और लेख भी लिखे। रहस्य चन्द्रिका नामक पत्रिका का सम्पादन और मल्लिका चन्द्र एंड कम्पनी का संचालन भी किया।

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