‘महाभिषग’ शीर्षक से ही स्पष्ट है कि यह गौतम बुद्ध के जीवन पर आधारित उपन्यास है न कि भगवान बुद्ध के। बुद्ध को भगवान बनानेवाले उस महान उद्देश्य से ही विचलित हो गए थे, जिसे लेकर बुद्ध ने अपना महान सामाजिक प्रयोग किया था और यह सन्देश दिया था कि जाति या जन्म के कारण कोई किसी अन्य से श्रेष्ठ नहीं है और कोई भी व्यक्ति यदि संकल्प कर ले और जीवन–मरण का प्रश्न बनाकर इस बात पर जुट जाए तो वह भी बुद्ध हो सकता है।

‘महाभिषग’ इस क्रान्तिकारी द्रष्टा के ऊपर पड़े देववादी खोल को उतारकर उनके मानवीय चरित्र को ही सामने नहीं लाता, यह देववाद के महान गायक अश्वघोष को भी एक पात्र बनाकर सिर के बल खड़ा करने का और देववाद की सीमाओं को उजागर करने का प्रयत्न करता है। इतिहास की मार्मिक व्याख्या वर्तमान पर कितनी सार्थक टिप्पणी बन सकती है, इस दृष्टि से भी यह एक नया प्रयोग है।

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Language Hindi
Format Paper Back
Edition Year 2001
Pages 198p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Bhagwan Singh

Author: Bhagwan Singh

भगवान सिंह

जन्म : 1931 में गोरखपुर जनपद के गगहा गाँव में। साहित्य की विविध विधाओं में लेखन। उनका शोधपरक लेखन इतिहास और भाषा के क्षेत्र में रहा है।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘काले उजले टीले’ (1964); ‘महाभिषग’ (1973); ‘अपने-अपने राम’ (1992); ‘परम गति’ (1999); ‘उन्माद’ (2000); ‘शुभ्रा’ (2000); ‘अपने समानान्तर’ (1970); ‘इन्द्र धनुष के रंग’ (1996)।

शोधपरक रचनाएँ : ‘स्थान नामों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन’ (अंशत: प्रकाशित, ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’, 1973); ‘आर्य-द्रविड़ भाषाओं की मूलभूत एकता’ (1973); ‘हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य’—दो खंडों में (1987); ‘दि वेदिक हड़प्पन्स’ (1995); ‘भारत तब से अब तक’ (1996); ‘भारतीय सभ्यता की निर्मिति’ (2004); ‘भारतीय परम्‍परा की खोज’ (2011); ‘प्राचीन भारत के इतिहासकार’ (2011); ‘कोसम्‍बी : मिथक और यथार्थ’ (2011); ‘आर्य-द्रविड़ भाषाओं का अन्‍त:सन्‍बन्ध’ (2013); ‘इतिहास का वर्तमान’ (2016)।

सम्प्रति : 'ऋग्वेद की परम्परा’ पर धारावाहिक लेखन, 'नया ज्ञानोदय’ में।

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