Madhya Bharat Ke Pahaadi Elake

Translator: Dinesh Malviya
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Madhya Bharat Ke Pahaadi Elake
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‘मध्यभारत के पहाड़ी इलाक़े’ पुस्तक मध्यभारत के उन पहाड़ी और मैदानी इलाक़ों से हमारा साक्षात्कार कराती है जहाँ आदिवासियों की गहरी पैठ रही है।

पुस्तक हमें बताती है कि आम तौर पर लोग भारत के ‘पहाड़ी’ और ‘मैदानी’ इलाक़ों की ही बात करते हैं। पहाड़ी इलाक़े से उनका अभिप्राय होता है—मात्र हिमालय पर्वत शृंखला तथा मैदानी इलाक़े यानी बाक़ी देश। पृथ्वी पर बड़े-बड़े पर्वतों, जिन्हें ‘पहाड़’ से ज्‍़यादा कुछ नहीं कहा जाता, और तथाकथित ‘मैदानी’ इलाक़ों के बीच जो बहुत-सी ज़मीन पड़ी है, उसके लिए कोई निर्दिष्ट भौगोलिक नाम नहीं है।

प्रायद्वीप के दक्षिण में नीलगिरि नाम की पर्वत शृंखला है, जिसकी ऊँचाई 9000 फ़ीट है, लेकिन भारत से बाहर और भारत में भी इसे ऐसे इलाक़े के रूप में बहुत कम लोग जानते हैं, जो बीमार लोगों का आश्रय स्थल और विताप (जिसकी छाल से कुनैन बनती है) की नर्सरी है।

यह पुस्तक हमें उन स्थानों का भी भ्रमण कराती है, जहाँ पहुँचना मनुष्य के लिए लगभग दुष्कर है। इसमें नर्मदा घाटी, महादेव पर्वत, मूल जनजातियों, सन्‍त लिंगों का अवतरण, सागौन क्षेत्र, शेर, उच्चतर नर्मदा, साल वन आदि का भी विस्तार से वर्णन हुआ है।

प्रकृति-प्रेमियों, पर्यटकों तथा शोधकर्ताओं के लिए एक बेहद ज़रूरी पुस्तक।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2019, Ed. 2nd
Pages 296P
Translator Dinesh Malviya
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2.5
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Capt. J. Forsith

Author: Capt. J. Forsith

केप्टन जे. फ़ोरसिथ

जन्म: 18 दिसम्बर, 1837

केप्टन जे. फोरसिथ सेंट्रल प्रोविंसिस और बरार (अविभाजित मध्य प्रदेश का तत्कालीन नाम) के लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व प्रभारी कंजरवेटर ऑफ़ फ़ॉरेस्ट थे। इसके बाद वे निमाड़ ज़‍िले के वित्तीय कमिश्नर भी रहे। केप्टन फ़ोरसिथ ने तत्कालीन मध्य प्रदेश के बारे में बड़े विस्तार से इस पुस्तक में जानकारी दी। उन्होंने सतपुड़ा पर्वत शृंखला हिन्दू राज्य, मुग़लों का राज्य, गोंड राजाओं की पराजय मध्य प्रदेश में लूटपाट का साम्राज्य और अंग्रेज़ों के आगमन से लेकर नर्मदा की घाटी, महादेव की पहाड़ियाँ और जनजातीय क्षेत्रों के बारे में तथा सागौन के सात क्षेत्र, शेर आदि के बारे में बड़े विस्तार से लिखा है। एक तत्कालीन पत्रिका ‘द ग्राफ़‍िक’ में उनके बारे में लिखा गया है कि वे विद्वान्, प्रकृति-प्रेमी और खिलाड़ी थे। इसके साथ ही उनमें साहित्यिक प्रतिभा का भी अद्भुत संगम था।

केप्टन फ़ोरसिथ की यह किताब उनकी मृत्यु के पश्चात् सन् 1871 में प्रकाशित हुई और आज तक जनजातियों के मामलों में एक सम्पूर्ण सन्दर्भ-ग्रन्थ बनी हुई है।

निधन : 17 सितम्बर, 1864

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