Lok Sanskriti Ki Rooprekha-Text Book

ISBN: 9788180313776
Edition: 2021, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
₹275.00
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9788180313776
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लोक-साहित्य लोक-संस्कृति की एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। यह इसका अविच्छिन्न अंग अथवा अवयव है। जब से लोक-साहित्य का भारतीय विश्वविद्यालयों में अध्ययन तथा अध्यापन के लिए प्रवेश हुआ है, तब से इस विषय को लेकर अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना हुई है। प्रस्तुत ग्रन्थ को छह खंडों तथा 18 अध्यायों में विभक्त किया गया है।

प्रथम अध्याय में लोक-संस्कृति शब्द के जन्म की कथा, इसका अर्थ, इसकी परिभाषा, सभ्यता और संस्कृति में अन्तर, लोक-साहित्य तथा लोक-संस्कृति में अन्तर, हिन्दी में फोक लोर का समानार्थक शब्द लोक-संस्कृति तथा लोक-संस्कृति के विराट स्वरूप की मीमांसा की गई है। दि्वतीय अध्याय में लोक-संस्कृति के अध्ययन का इतिहास प्रस्तुत किया गया है। यूरोप के विभिन्न देशों जैसे—जर्मनी, फ़्रांस, इंग्लैंड, स्वीडेन तथा फ़िनलैंड आदि में लोक-साहित्य का अध्ययन किन विद्वानों द्वारा किया गया, इसकी संक्षिप्त चर्चा की गई है।

दि्वतीय खंड पूर्णतया लोक-विश्वासों से सम्बन्धित है। अतः आकाश-लोक और भू-लोक में जितनी भी वस्तुएँ उपलब्ध हैं और उनके सम्बन्ध में जो भी लोक-विश्वास समाज में प्रचलित है, उनका सांगोपांग विवेचन इस खंड में प्रस्तुत किया गया है।

तीसरे खंड में सामाजिक संस्थाओं का वर्णन किया है जिसमें दो अध्याय हैं—(1) वर्ण और आश्रम तथा (2) संस्कार। वर्ण के अन्तर्गत ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों के कर्तव्य, अधिकार तथा समाज में इनके स्थान का प्रतिपादन किया गया है। चौथे खंड में आश्रम वाले प्रकरण में चारों आश्रमों की चर्चा की गई है। जातिप्रथा से होनेवाले लाभ तथा हानियों की चर्चा के पश्चात् संयुक्त परिवार के सदस्यों के कर्तव्यों का परिचय दिया गया है।

पंचम खंड में ललित कलाओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इन कलाओं के अन्तर्गत संगीतकला, नृत्यकला, नाट्यकला, वास्तुकला, चित्रकला, मूर्तिकला आती हैं। संगीत लोकगीतों का प्राण है। इसके बिना लोकगीत निष्प्राण, निर्जीव तथा नीरस है।

षष्ठ तथा अन्तिम खंड में लोक-साहित्य का समास रूप में विवेचन प्रस्तुत किया गया है। लोक-साहित्य का पाँच श्रेणियों में विभाजन करके, प्रत्येक वर्ग की विशिष्टता दिखलाई गई है।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2021, Ed. 2nd
Pages 324p
Price ₹275.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 1.5
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Author: Krishnadev Upadhyaya

डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय

जन्म : सन् 1910; उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के सोनबरसा नामक गाँव में।

शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा ग्रामीण पाठशाला में। माध्यमिक शिक्षा बलिया में तथा उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में। एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (संस्कृत), पीएच.डी. (हिन्दी), साहित्य रत्न।

प्रकाशन : ‘लोक-साहित्य की भूमिका’, ‘हिन्दी प्रदेश के लोकगीत’, ‘भारत में लोक-साहित्य’, ‘अवधी लोकगीत’ आदि प्रमुख कृतियाँ हैं।

राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, नैनीताल तथा ज्ञानपुर (वाराणसी) में वर्षों तक पी.ई.एस. ग्रेड में हिन्दी के प्राध्यापक; काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में यू.जी.सी. के भूतपूर्व प्रोफ़ेसर।

संस्थापक-संचालक; भारतीय लोक-संस्कृति शोध संस्थान, वाराणसी। संयोजक; अखिल भारतीय लोक-संस्कृति सम्मेलन, प्रयाग (1958), बम्बई (1959) तथा उज्जैन (1961)। अखिल भारतीय भोजपुरी सांस्कृतिक सम्मेलन, वाराणसी (1964 तथा 1965) में क्रमशः मंत्री तथा स्वागताध्यक्ष। यूरोप की तीन बार लोक-सांस्कृतिक यात्रा।

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