Likhane Ka Nakshhatra

Author: Malay
Edition: 2002, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
15% Off
Out of stock
SKU
Likhane Ka Nakshhatra

मलय की कविता एक सृष्टि रचने की तरह लगती है। इसलिए उसके पाठ को पूरी तरह समझकर अर्थवस्तु की संगति खोजी जा सकती है। उसका पाठ पेचीदा है। यह एक पूरा नाट्य-व्यापार है जो चाक्षुष माध्यमों के मुक़ाबले अपनी ध्वनियों से टक्कर लेता है। कविता के इस पाठ का वस्तु की संश्लिष्टता से गहरा सम्बन्ध है। यह सामान्य कथन की कविता है भी नहीं। इस कविता का ठाठ जटिल है। यह गहरी और मज़बूत जड़ों वाली, व्यापक प्रशाखाओं में विकसित होनेवाली अनन्त संघर्षों से युक्त परम्परा का विनम्र स्वीकार भी है। यह स्वीकार पंच महाभूतों और इन्द्रियों के चर-अचर तक व्यापक है। संवाद की ललक का ऐसा व्यापक विस्तार कविता में कम ही देखने को मिलता है। एक अर्थ में मलय की कविता दृश्य बिम्बात्मक है। चाक्षुष प्रत्यय फंतासी बनकर खड़ा होता है।

आज के युग-सत्य कविता को वाचाल नहीं बनाते। मलय का काव्य-विवेक तमाम जीवनानुभूतियों से एक साथ टकराता है। अनुभव की चिनगारियाँ इस कविता में साफ़-साफ़ चमकती हैं। छोटे-छोटे दृश्य-बिम्ब व्यापक धरातल पर अपनी गतिशीलता में इतने क्रियाशील होते हैं कि निरन्तरता का एक नया द्वन्द्व उभरता है। मलय की कविता एक स्पन्दनशील जगत् की कविता है। यहाँ प्रत्येक शब्द सक्रिय है, उसकी क्रियाशीलता उसके व्यवहार से जानी जाती है। इस कविता में कुछ भी आरोपित नहीं है : न प्रगति, न प्रयोग। कवि अपनी कविता का स्रोत जीवन को मानता है। जहाँ भी, जैसा भी वह है, कविता का विषय है। अपनी सुदीर्घ रचना-यात्रा में मलय की कविता भटकी नहीं है। मलय की कविताओं की यह छठी पुस्तक है।

मलय की ये कविताएँ बन्धनों से मुक्ति के लिए सामूहिक प्रयासों की सार्थकता का स्वीकार हैं। कवि के सामने मेहनतकश समाज की अपार दु:ख-गाथाएँ हैं। इन गाथाओं के दु:ख को इन कविताओं में सुना जा सकता है।

—वीरेन्द्र मोहन

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2002
Edition Year 2002, Ed. 1st
Pages 132p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Likhane Ka Nakshhatra
Your Rating
Malay

Author: Malay

मलय

जन्म : 19 नवम्बर, 1929 को जबलपुर, मध्य प्रदेश के सहशन गाँव में।

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर एवं पीएच.डी.।

प्रमुख कृतियाँ : ‘हथेलियों का समुद्र’, ‘फैलती दरार में’, ‘शामिल होता हूँ’, ‘अँधेरे दिन का सूर्य’, ‘निर्मुक्त अधूरा आख्यान’ (काव्य-संग्रह); ‘खेत’ (कहानी-संग्रह)।

‘व्यंग्य का सौन्दर्यशास्त्र’ पुस्तक के साथ आलोचनात्मक निबन्ध, समीक्षाएँ एवं टिप्पणियाँ प्रकाशित। कविताएँ बांग्ला में अनूदित।

‘आँखन देखी’, ‘साँझ सकारे’, ‘परसाई रचनावली’ एवं ‘वसुधा’ के सम्पादक मंडल में रहे।

सम्मान : ‘भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार’ से सम्मानित।

प्रदेश के विभिन्न महाविद्यालयों में अध्यापन के बाद शासकीय महाकौशल कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, जबलपुर से प्राध्यापक-पद से सेवानिवृत्त।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top