Konark

Edition: 2023, Ed. 6th
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Konark
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जगदीशचन्द्र माथुर का ‘कोणार्क’ अत्यन्त सफल कृति है। नाट्यकला की ऐसी सर्वांगपूर्ण सृष्टि अन्यत्र देखने को नहीं मिली। विषय-निर्वाचन, कथा-वस्तु, क्रम-विकास, संवाद, ध्वनि, मितव्ययिता आदि दृष्टियों से ‘कोणार्क’ अद्भुत कला-कृति है।

छोटे-छोटे अंकों के भीतर एक विराट युग का स्पन्दन गागर में सागर की तरह छलक उठता है। उपक्रम तथा उपसंहार लेखक के अत्यन्त मौलिक प्रयोग हैं, जिनमें नाटक की सीमाएँ एक रहस्य-विस्तार में खो-सी गई हैं। उपक्रम में आँखों के सामने एक विस्मृत ऐतिहासिक युग का ध्वंस-शेष, कल्पना में समुद्र ही तरह आर-पार उद्वेलित होकर साकार हो उठता है।

कलाकार का बदला जीवन-सौन्दर्य ही चुनौती नहीं देता, वह अत्याचारी को भी जैसे अतल अन्धकार में डाल देता है। सहनशील ‘विशु’ तथा विद्रोही ‘धर्मपद’ में कला के प्राचीन और नवीन युग मूर्तिमान हो उठते हैं। ‘विशु’ और ‘धर्मपद’ का पिता-पुत्र का नाता और तत्सम्बन्धी करुण-कथा इतिहास के गर्जन में घुल-मिलकर नाटक को मार्मिकता प्रदान करती है।

आज के संघर्ष के जर्ज युग में ‘कोणार्क’ द्वारा ‘कला और संस्कृति’ अपनी चिरन्तन उपेक्षा का विद्रोहपूर्ण सन्देश मनुष्य के पास पहुँचा रही है।

— सुमित्रानंदन पंत

(सन् 1950 में लिखित)

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1992
Edition Year 2023, Ed. 6th
Pages 104p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1
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Jagdish Chandra Mathur

Author: Jagdish Chandra Mathur

जगदीशचन्द्र माथुर

जन्म : 16 जुलाई, 1917; शाहजहाँपुर (उ.प्र.)।

शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेज़ी) इलाहाबाद विश्वविद्यालय। सन् 1941 में आई.सी.एस. परीक्षा उत्तीर्ण। अमेरिका में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया।

प्रमुख कृतियाँ : सन् 1936 में प्रथम एकांकी ‘मेरी बाँसुरी’ का मंचन व ‘सरस्वती’ में प्रकाशन। पाँच एकांकी नाटकों का संग्रह ‘भोर का तारा’ सन् 1946 में प्रकाशित। इसके बाद ‘ओ मेरे अपने’ (1950), ‘मेरे श्रेष्ठ रंग एकांकी’, ‘कोणार्क’ (1951), ‘बंदी’ (1954), ‘शारदीया’ (1959), ‘पहला राजा’ (1969), ‘दशरथ नन्दन’ (1974) तथा ‘कुँवरसिंह की टेक’ (1954) और ‘गगन सवारी’ (1958) के अलावा दो कठपुतली नाटक भी लिखे। ‘दस तस्वीरें’ और ‘जिन्होंने जीना जाना’ में रेखाचित्र संस्मरण हैं। ‘परम्पराशील नाट्य’ उनकी समीक्षा दृष्टि का परिचायक है। ‘बहुजन-सम्प्रेषण के माध्यम’ जगदीश जी की ‘जन-संचार’ पर विशिष्ट पुस्तक मानी गई है।

सन् 1944 में बिहार के सुप्रसिद्ध सांस्कृतिक पर्व वैशाली महोत्सव का बीजारोपण किया।

सम्मान : ‘विद्यावारिधि’ की उपाधि से विभूषित, ‘कालिदास अवार्ड’ और ‘बिहार राजभाषा पुरस्कार’ से सम्मानित।

कार्य : ऑल इंडिया रेडियो में महानिदेशक रहे, फिर सूचना और प्रसारण मंत्रालय में संयुक्त सचिव। गृह मंत्रालय में हिन्दी सलाहकार के पद पर भी कार्य किया। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विज़़िटिंग फ़ेलो के अतिरिक्त अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स से जुड़े थे।

निधन : 14 मई, 1978; दिल्ली में।

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