Jivashmon Ki Kahani

Author: Ajit Kumar Pal
Translator: Ranjeet Kumar Kar
Edition: 2012, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Jivashmon Ki Kahani

जीवाश्मों की तुलना यदि पृथ्वी की आत्मकथा के पृष्ठों से की जाए तो पृथ्वी के विभिन्न भूभागों में इन्हें धारण करनेवाली कोशिकाएँ वस्तुत: बीते हुए कल के अभिलेखागार कही जाएगी।

‘फ़ॉसिल’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘फ़ॉसिलिस’ से हुई है जिसमें इसका अर्थ होता है ‘पृथ्वी के गर्भ से निकली हुई वस्तु’। इस प्रकार रोमन साम्राज्य के काल से लेकर अठारहवीं शताब्दी तक भू–गर्भ से प्राप्त प्रत्येक वस्तु को ‘फ़ॉसिल’ की संज्ञा दी जाती रही। इसके पश्चात् वैज्ञानिकों ने इस शब्द की सीमाओं को संकुचित करते हुए जो परिभाषा दी, उसका अभिप्राय है—‘भूवैज्ञानिक अतीत में पाए जानेवाले जीवों के चिह्न’। यद्यपि इनमें प्राणियों अथवा वनस्पतियों के अवशेष, उनके प्राकृतिक समदृश्य, अथवा उनकी जैविक गतिविधियाँ भी शामिल हैं। अत: जहाँ एक ओर जीवाश्मों (फ़ॉसिल) से हमें चर–अचर प्राणियों और वनस्पतियों की उत्पत्ति, विनाश तथा उनके आकृतिक उद्भव की जानकारी मिलती है। वहीं दूसरी तरफ़ वे कालान्तर में महाद्वीपों एवं महासागरों की भौगोलिक स्थिति, ध्रुवों के घूर्णन और भू-पपड़ी के भौतिक विकास का रहस्य भी उजागर करते हैं।

जीवाश्मों के विषय में मानव की जिज्ञासा अत्यन्त प्राचीन है। पृथ्वी की आदि–सृष्टि से लेकर आज तक निरन्तर चलनेवाली विकास–प्रक्रिया की उलझी हुई शृंखलाओं को सुलझाने में जीवाश्मों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यही कारण है कि ‘डायनासोर’ की जीवाश्मीकृत अस्थियों से चिपकी हुई रक्त की एक बूँद में ‘एमिनो–एसिड’ की उपस्थिति ने मनुष्यों की कल्पना शक्ति को नए आयाम दिए हैं। मौलिक दृष्टि से इस पुस्तक में जीवन की उत्पत्ति से लेकर जीवाश्मीकरण की प्रक्रिया से जुड़े हर प्रश्न का समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। जीवाश्म विज्ञान से सम्बन्धित नवीनतम शोध–कार्य के मुख्य अंश को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है, जो सम्भवत: राष्ट्रभाषा हिन्दी में अपनी तरह का प्रथम प्रयास है। महत्त्वपूर्ण तथ्यों से साक्षात्कार कराने हेतु अनेक श्वेत–श्याम छायाचित्रों को शामिल किया गया है, जो इस पुस्तक को और भी रोचक तथा ज्ञानवर्धक बनाते हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2012, Ed. 1st
Pages 120p
Translator Ranjeet Kumar Kar
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Ajit Kumar Pal

Author: Ajit Kumar Pal

अजीत पाल

जन्म : सन् 1944 को ढाका में।

कलकत्ता विश्वविद्यालय से सन् 1971 में भू-तत्त्व में पीएच.डी.। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जी.एस.आई.) संस्था से आपका कर्मजीवन शुरू हुआ। दीर्घ समय तक काम करने के बाद उस संस्था के एक विभाग पेलिऑन्‍टोलॉजी (Palaeontology) के अध्यक्ष बने। बीच में अल्प काल के लिए यादवपुर विश्वविद्यालय के पराजीव-विज्ञान विभाग में रीडर बनकर अध्यापन किया। रयाल सोसाइटी और नफेल्तु फ़ाउंडेशन की वृत्ति पाकर लन्दन और पेरिस विश्वविद्यालय में गवेषणा की। पत्र-पत्रिकाओं में उनके विविध लेख (अंग्रेज़ी व बांग्ला में) प्रकाशित।

निधन : 29 फरवरी, 2006

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