Hindu Sabhyata-Text Book

Translator: Vasudevsharan Agrawal
ISBN: 9788126705016
Edition: 2024, Ed. 12th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
₹350.00
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9788126705016
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‘हिन्दू सभ्यता’ प्रख्यात इतिहासकार प्रो. राधाकुमुद मुखर्जी की सर्वमान्य अंग्रेज़ी पुस्तक ‘हिन्दू सविलाजेशन’ का अनुवाद है। अनुवाद किया है इतिहास और पुरातत्त्व के सुप्रतिष्ठ विद्वान डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने। इसलिए अनूदित रूप में भी यह कृति अपने विषय की अत्यन्त प्रामाणिक पुस्तकों में सर्वोपरि है।

हिन्दू सभ्यता के आदि स्वरूप के बारे में प्रो. मुखर्जी का यह शोधाध्ययन ऐतिहासिक तिथिक्रम से परे प्रागैतिहासिक, ऋग्वैदिक, उत्तरवैदिक और वेदोत्तर काल से लेकर इतिहास के सुनिश्चित तिथिक्रम के पहले दो सौ पचहत्तर वर्षों (ई. पू. 650-325) पर केन्द्रित है। इसके लिए उन्होंने ऋग्वेदीय भारतीय मानव के उपलब्ध भौतिक अवशेषों तथा उसके द्वारा प्रयुक्त विभिन्न प्रकार की उत्खनित सामग्री का सप्रमाण उपयोग किया है।

वस्तुतः प्राचीन सभ्यता या इतिहास-विषयक प्रामाणिक लेखन उपलब्ध अलिखित साक्ष्यों के बिना सम्भव ही नहीं है। यह मानते हुए भी कि भारत में साहित्य की रचना लिपि से पहले हुई और वह दीर्घकाल तक कंठ-परम्परा में जीवित रहकर ‘श्रुति’ कहलाया जाता रहा, उसे भारतीय इतिहास की प्राचीनतम साक्ष्य-सामग्री नहीं माना जा सकता। यों भी यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि लिपि, लेखन-कला, शिक्षा या साहित्य मानव-जीवन में तभी आ पाए, जबकि सभ्यता ने अनेक शताब्दियों की यात्रा तय कर ली। इसलिए प्रागैतिहासिक युग के औज़ारों, हथियारों, बर्तनों और आवासगृहों तथा वैदिक और उत्तरवैदिक युग के वास्तु, शिल्प, चित्र, शिलालेख, ताम्रपट्ट और सिक्कों आदि वस्तुओं को ही अकाट्य ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। कहना न होगा कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के क्षेत्र में अध्ययनरत शोध छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी इस कृति के निष्कर्ष इन्हीं साक्ष्यों पर आधारित हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 1990
Edition Year 2024, Ed. 12th
Pages 336p
Price ₹350.00
Translator Vasudevsharan Agrawal
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Author: Radhakumud Mukherji

राधाकुमुद मुखर्जी

प्रो. मुखर्जी का जन्म बंगाल के एक शिक्षित परिवार में हुआ। प्रेजीडेंसी कॉलेज, कोलकाता से इतिहास तथा अंग्रेज़ी में एम.ए. की डिग्री लेने के बाद उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की।

अपने शैक्षिक जीवन की शुरुआत उन्होंने अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर के रूप में की, लेकिन कुछ समय बाद ही वे इतिहास में चले गए और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास तथा संस्कृति के महाराजा सर मनीन्द्रचन्द्र नंदी प्रोफ़ेसर के रूप में नियुक्त हुए। इस पर वे केवल एक वर्ष रहे और उसके तुरन्त बाद मैसूर विश्वविद्यालय में इतिहास के पहले प्रोफ़ेसर नियुक्त हुए। सन् 1921 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय के इतिहास विभागाध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया और मृत्युपर्यन्त वहीं बने रहे। सन् 1963 में 83 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ।

प्रो. राधाकुमुद मुखर्जी आजीवन प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में लगे रहे और उन्होंने प्राचीन भारत के विभिन्न पक्षों पर विस्तृत एवं आलोचनात्मक शोध-निबन्ध लिखे। अपने अनेक ग्रन्थों में उन्होंने निष्कर्षों तक पहुँचने से पहले सभी उपलब्ध स्रोतों और जानकारियों का भरपूर उपयोग किया।

प्रमुख पुस्तकें : ‘चन्द्रगुप्त मौर्य और उसका काल’, ‘अशोक’, ‘हर्ष’, ‘प्राचीन भारतीय विचार और विभूतियाँ’, ‘हिन्दू सभ्यता’, ‘प्राचीन भारत’, ‘अखंड भारत’, ‘द गुप्त एंपायर’, ‘लोकल सेल्फ़ गवर्नमेंट इन एंशिएंट इंडिया’, ‘द हिस्ट्री ऑफ़ इंडियन शिपिंग एंड मैरीटाइम एक्टिविटी फ्रॉम द अर्लियस्ट टाइम्स’, ‘एंशिएंट इंडियन एजूकेशन’, ‘फ़ंडामेंटल यूनिटी ऑफ़ इंडिया’, ‘नेशनलिज्म इन हिन्दू कल्चर’, ‘ए न्यू एप्रोच टु कम्यूनल प्रॉब्लम’, ֹ‘नोट्स ऑन अर्ली इंडियन आर्ट’, ‘इंडियाज़ लैंड सिस्टम’ आदि।

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