प्रेमचन्द के बाद हिन्दी कहानी ने अपनी रचना-यात्रा में अनेक नए और सम्भावनापूर्ण शिखरों का स्पर्श किया। लेकिन कहानी के मूल्यांकन की वास्तविक शुरुआत ‘नई कहानी’ से ही हुई। ‘नई कहानी’ से ही आन्दोलनों की व्याख्या स्वयं रचनाकारों द्वारा आरम्भ होने की परम्परा का भी सूत्रपात हुआ—बहुत कुछ ‘छायावाद’ और ‘नई कविता’ के ढंग पर। आगे चलकर ‘सचेतन कहानी’, ‘अ-कहानी’, ‘समान्तर कहानी’ और ‘जनवादी कहानी’ तक आन्दोलनों की उपलब्धियों का बखान प्राय: उनके रचनाकारों की ही ज़िम्मेवारी समझा जाता रहा। उपलब्धियों के इस कैसे ही एकांगी बखान से बचकर 'हिन्दी कहानी का विकास' में इन विभिन्न आन्दोलनों की पड़ताल उनके सामाजिक कारकों के बीच की गई है। अतियों और सामाजिक कारकों के बीच की गई है। अतियों और एकांगिता से बचते हुए अपनी सुस्पष्ट और सुनिश्चित शैली में मधुरेश ने हिन्दी कहानी के लगभग एक शताब्दी के विकास-क्रम को अत्यन्त संक्षेप में प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास किया है। मधुरेश के साथ और बाद में आए जहाँ अनेक आलोचक आज आलोचना के परिदृश्य से लगभग ग़ायब हो चुके हैं, वे पिछले तीन दशकों से निरन्तर अपनी उपस्थिति से कहानी की आलोचना में सार्थक हस्तक्षेप करते रहे हैं। ‘हिन्दी कहानी का विकास' उनकी इस उपस्थिति का ही महत्त्वपूर्ण साक्ष्य है।
‘हिन्दी कहानी का विकास' में कदाचित् पहली बार हिन्दी कहानी के समूचे विकास-क्रम को समझते हुए उसके प्रमुख आन्दोलनों का मूल्यांकन सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि में किया गया है। सम्भवत: इसीलिए यह रचनाकारों की आत्ममुग्ध और प्रशस्तकारी व्याख्याओं से अधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 1996 |
Edition Year | 2018, Ed. 9th |
Pages | 196p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1.5 |