Herbert

Awarded Books,Sahitya Academy Awards,Fiction : Novel
Translator: Munmun Sarkar
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Herbert
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बिलकुल नई भाषा-भंगिमा और अद्भुत कथा-सामर्थ्य को उपस्थित करता यह उपन्यास अपने आप में इस बात का सबूत है कि कैसे आकार में बड़ी न होकर भी एक कथा अपने समय और जीवन का विशद आख्यान बन सकती है। प्रतिष्ठित कथाकार देवेश राय का अभिमत है कि बाँग्ला भाषा में समकालीन दौर में हरबर्टजैसा मौलिक उपन्यास दूसरा नहीं लिखा गया। 1997 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि-कथाकार नवारुण भट्टाचार्य उन बिरले लेखकों में हैं जिनके इस पहले ही उपन्यास पर यह पुरस्कार मिला। समकालीन बाँग्ला साहित्य में जबरदस्त हलचल उत्पन्न करने वाली यह कृति नरसिंह दास अवार्डऔर बँकिम पुरस्कारपहले ही पा चुकी थी।

यह उपन्यास महज कथा-नायक हरबर्ट सरकार की जीवन कथा ही नहीं है बल्कि अपने समय के इतिहास से गुजरते हुए एक ऐसे व्यक्ति की दास्तान है जिसके भीतर भी एक इतिहास है और जो अपनी मामूली जिंदगी को एक अर्थ देने के लिए अपने समय में असफल हस्तक्षेप करता है। गुजरते वक्त का इतिहास उपस्थित करते हुए हरबर्ट के भीतर बैठे इतिहास की खिड़की खोलने में उपन्यासकार ने जो आख्यान रचा है, उसमें उन्नीसवीं सदी के बाँग्ला कवियों की काव्य-पंक्तियाँ हर अध्याय के शुरू में जीवन दर्शन की तरह उपस्थित होती हैं और व्यक्ति, पीढ़ियाँ, पैतृक मकान, मुहल्ला, शहर, संबंध, भाईचारा, बेगानापन, समाज-व्यवस्था, राजनीतिक प्रणाली, व्यवस्था परिवर्तन का प्रतिरोध, पूँजीवादी आधुनिकता और उसकी क्रूरता आदि को समेटती हुई मामूली आदमी की महागाथा तैयार हुई है।

इतने छोटे कलेवर के उपन्यास में इतने सघन प्रभाव के साथ यह सब संभव हो पाया है अपने अपूर्व रचना-विधान और विशिष्ट भाषा रीति के कारण, जो उपन्यास लेखन की प्रचलित और परिचित परिपाटी से भिन्न नवारुण भट्टाचार्य की मौलिक उद्भावना है। यह उपन्यास गुजरते हुए काल का इतिहास है, बीत चुका अतीत नहींयह जारी है। और, हरबर्ट भी मरता नहींबार-बार पैदा हो जाता है।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2009
Edition Year 2021, Ed. 2nd
Pages 120p
Translator Munmun Sarkar
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 18 X 12 X 1
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Editorial Review

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Author: Navarun Bhattacharya

नवारुण भट्टाचार्य

जन्म : 1948 में 23 जून को पश्चिम बंगाल के बहरमपुर में। बंगाल के किंवदन्ती नाट्य-पुरुष बिजन भट्टाचार्य और विख्यात लेखिका महाश्वेता देवी के इकलौते पुत्र।

शिक्षा : आरम्भ से विज्ञान के छात्र रहे। फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी आनर्स के साथ बी.ए. तक पढ़ाई की। 

वृत्ति : दो दशकों तक एक विदेशी समाचार सेवा के सम्पादक-पद पर कार्य किया। 

सृजन : विशिष्ट गद्यकार और कवि के रूप में समकालीन बांग्ला साहित्य में अत्यन्त चर्चित और महत्त्वपूर्ण नाम। कवि, कथाकार और समालोचक होने के साथ ही प्रयोगधर्मी नाट्य-दल नवान्नके निर्देशक भी रहे।

प्रमुख कृतियाँ : एइ मृत्यु उपत्यका आमार देश ना, पुलिस कोरे मानुष शिकार (कविता-संग्रह); हालाल झंडा, नवारुण भट्टाचार्येर छोटो गल्प (कहानी-संग्रह); हरबर्ट, युद्ध परिस्थिति, भोगी, खेलना नगर (उपन्यास)।

अनुवाद : हिन्दी में कविता-पुस्तक यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश और हरबर्ट प्रकाशित। इसके अलावा कई कविताएँ और कहानियाँ हिन्दी समेत दूसरी भाषाओं में अनूदित और महत्त्वपूर्ण संकलनों में संगृहीत।

सम्मान : उपन्यास हरबर्ट के लिए नरसिंह दास अवार्ड’, ‘बंकिम पुरस्कार’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार

निधन : 31 जुलाई, 2014

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