भारत सहित पूरे संसार में ग़ैर-सरकारी संगठनों का एक आन्दोलन ही इन दिनों सक्रिय है। इस माध्यम से सजग नागरिकों के द्वारा अपने समुदाय और समाज के कल्याण के लिए कार्य करने में एक इतिहास ही रच दिया गया है।

पर ग़ैर-सरकारी संगठन का निर्माण कर लेना जितना सरल है, उसका निर्वाह करना उसकी तुलना में कहीं अधिक जटिल है। सामान्य तौर पर सरकारें ग़ैर-सरकारी संगठनों के साथ काम करने को उत्सुक रहती हैं, परन्तु भारत जैसे देश में नौकरशाही इनसे अप्रसन्न ही बनी रहती है। राजनैतिक प्रतिरोध भी कुछ कम नहीं होता।

तब भी एक बेहतर सोच लेकर चलनेवाले लोगों के लिए काम करने और नतीजे निकाल लाने की सम्भावना कुछ कम नहीं है। आख़िर वे कौन से तत्त्व हैं, जो एक समर्पित ग़ैर-सरकारी संगठन की वास्तविक पूँजी होते हैं। ऐसे ही सवालों से जूझती है यह पुस्तक।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2010
Edition Year 2010, Ed. 1st
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 1.5
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Rajendra Chadrakant Ray

Author: Rajendra Chadrakant Ray

राजेंद्र चंद्रकांत राय

जन्म : 5 नवम्बर, 1953; जबलपुर (म.प्र.)।
शिक्षा : रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर उपाधि, बी.एड.। राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा नेट, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन रूरल डेवलपमेंट, इग्नू, दिल्ली।
अध्यापन के क्षेत्र में आजीविका की शुरुआत। ‘परिक्रमा’ पर्यावरण शिक्षा संस्थान के निदेशक के रूप में सक्रिय रहे। राजीव गांधी जलग्रहण क्षेत्र प्रबन्धन मिशन मध्यप्रदेश शासन के परियोजना अधिकारी के रूप में 1997-2003 तक वाटरशेड प्रबन्धन का सफल क्रियान्वयन।
आकाशवाणी, जबलपुर से पर्यावरण रेडियो पत्रिका ‘ताकि बची रहे हरियाली’ का 1992 से 1999 तक सम्पादन। ‘कृषि परिक्रमा कार्यक्रम’ का संयोजन तथा आकाशवाणी, जबलपुर के लिए ही औषधीय फ़सलों की कृषि विधि पर आधारित ‘उत्तम : स्वास्थ्य’ कार्यक्रम हेतु 13 एपिसोड का स्क्रिप्ट-लेखन। नाटक : ‘सहस्रबाहु’ का प्रसारण, ‘त्रिपुरी की इतिहास गाथा’ शीर्षक के 13 एपिसोड का स्क्रिप्ट-लेखन।
‘नवभारत’ तथा ‘नवभास्कर’ समाचार-पत्रों में साप्ताहिक स्तम्भ-लेखन। अनेक नाटकों, नुक्कड़ नाटकों में अभिनय एवं निर्देशन। मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली की जूनियर फ़ेलोशिप—1992 के अन्तर्गत उपन्यास-लेखन।
प्रमुख कृतियाँ : ‘इतिहास के झरोखे से’, ‘कल्चुरि राजवंश का इतिहास’, ‘कामकंदला’ (उपन्यास); ‘बेगम बिन बादशाह’ (कहानी-संग्रह); ‘दिन फेरें घूरे के’, ‘बिन बुलाए मेहमान’, ‘क्योंकि मनुष्य एक विवेकवान प्राणी है’, ‘आओ पकड़ें टोंटी चोर’, ‘तरला-तरला तितली आई’, ‘काले मेघा पानी दे’, ‘चलो करें वन का प्रबन्धन’ (नुक्कड़ नाटक) तथा ‘सामान्य पर्यावरण ज्ञान’, ‘पेड़ों ने पहने कपड़े हरे’ (पर्यावरण गीत) आदि।
कुछ कहानियों का तमिल तथा तेलुगू भाषा में अनुवाद।

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