भारत सहित पूरे संसार में ग़ैर-सरकारी संगठनों का एक आन्दोलन ही इन दिनों सक्रिय है। इस माध्यम से सजग नागरिकों के द्वारा अपने समुदाय और समाज के कल्याण के लिए कार्य करने में एक इतिहास ही रच दिया गया है।
पर ग़ैर-सरकारी संगठन का निर्माण कर लेना जितना सरल है, उसका निर्वाह करना उसकी तुलना में कहीं अधिक जटिल है। सामान्य तौर पर सरकारें ग़ैर-सरकारी संगठनों के साथ काम करने को उत्सुक रहती हैं, परन्तु भारत जैसे देश में नौकरशाही इनसे अप्रसन्न ही बनी रहती है। राजनैतिक प्रतिरोध भी कुछ कम नहीं होता।
तब भी एक बेहतर सोच लेकर चलनेवाले लोगों के लिए काम करने और नतीजे निकाल लाने की सम्भावना कुछ कम नहीं है। आख़िर वे कौन से तत्त्व हैं, जो एक समर्पित ग़ैर-सरकारी संगठन की वास्तविक पूँजी होते हैं। ऐसे ही सवालों से जूझती है यह पुस्तक।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2010 |
Edition Year | 2010, Ed. 1st |
Pages | 176p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14 X 1.5 |