यह पुस्तक कहने को तो एक सिविल सेवक का संस्मरण है, लेकिन जब पाठक इसमें प्रवेश करता है तो उसके समक्ष 20वीं शताब्दी की मध्यावधि, जो कि एक संक्रमणकाल है, के भारत और विशेष रूप से मध्य प्रदेश (सम्मिलित छत्तीसगढ़) के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक परिवेश का सजीव चित्र उभरता है। लेखक ने अपनी सिविल सेवा के अनुभवों की निर्भीकता और वस्तुनिष्ठता के साथ, किन्तु आत्मश्लाघा के भाव से सर्वथा रहित और विनोद बुद्धि के साथ वर्णन किया है। वर्णन कहीं ब्योरात्मक है और कहीं उत्कृष्ट साहित्यिक शैली में। यह पुस्तक किसी श्रेष्ठ साहित्यिक आख्यान में उपयोग की दृष्टि से शानदार अभिलेखागार है।
यह पुस्तक मुख्य रूप से ‘पर्दे के पीछे’ काम करती सिविल सेवा शासनतंत्र के संचालन और विकास-कार्यक्रमों में योगदान से परिचय कराती है। लेखक ने सिविल सेवा के उद्देश्यों, उसके मूल्यों और उनके सतत संगोपन और संवर्धन के तरीक़ों के बारे में प्रकाश डाला है, पर बिना किसी उपदेश या प्रवचन दिए।
नौकरशाही के प्रति देशव्यापी सकारात्मक वर्तमान माहौल में यह पुस्तक पाठकों के मन में अलग ही प्रभाव पैदा करती है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Indraneel Shankar Dani |
Editor | Sudhir Ranjan Singh |
Publication Year | 2015 |
Edition Year | 2016, Ed. 2nd |
Pages | 192p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1.5 |