Ek Anari Ki Kahi Kahani

Memoirs
Author: R. P. Noronha
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Ek Anari Ki Kahi Kahani

यह पुस्तक कहने को तो एक सिविल सेवक का संस्मरण है, लेकिन जब पाठक इसमें प्रवेश करता है तो उसके समक्ष 20वीं शताब्दी की मध्यावधि, जो कि एक संक्रमणकाल है, के भारत और विशेष रूप से मध्य प्रदेश (सम्मिलित छत्तीसगढ़) के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक परिवेश का सजीव चित्र उभरता है। लेखक ने अपनी सिविल सेवा के अनुभवों की निर्भीकता और वस्तुनिष्ठता के साथ, किन्तु आत्मश्लाघा के भाव से सर्वथा रहित और विनोद बुद्धि के साथ वर्णन किया है। वर्णन कहीं ब्योरात्मक है और कहीं उत्कृष्ट साहित्यिक शैली में। यह पुस्तक किसी श्रेष्ठ साहित्यिक आख्यान में उपयोग की दृष्टि से शानदार अभिलेखागार है।

यह पुस्तक मुख्य रूप से ‘पर्दे के पीछे’ काम करती सिविल सेवा शासनतंत्र के संचालन और विकास-कार्यक्रमों में योगदान से परिचय कराती है। लेखक ने सिविल सेवा के उद्देश्यों, उसके मूल्यों और उनके सतत संगोपन और संवर्धन के तरीक़ों के बारे में प्रकाश डाला है, पर बिना किसी उपदेश या प्रवचन दिए।

नौकरशाही के प्रति देशव्यापी सकारात्मक वर्तमान माहौल में यह पुस्तक पाठकों के मन में अलग ही प्रभाव पैदा करती है।    

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2015
Edition Year 2016, Ed. 2nd
Pages 192p
Translator Indraneel Shankar Dani
Editor Sudhir Ranjan Singh
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Editorial Review

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R. P. Noronha

Author: R. P. Noronha

आर.पी. नरोन्हा

आर.पी. नरोन्हा का जन्म 14 मई, 1916 को हैदराबाद में हुआ था। उन्होंने लोयाला कॉलेज, मद्रास से बी.ए. (ऑनर्स) और तत्पश्चात् लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से बी.एस-सी. (ऑनर्स) किया। वर्ष 1938 में इंडियन सिविल सर्विसेस परीक्षा में द्वितीय स्थान प्राप्त कर उन्होंने आई.सी.एस. के तत्कालीन मध्यप्रान्त संवर्ग में प्रवेश किया।

उनकी प्रशासनिक क्षमताओं और आदिवासियों के प्रति सहानुभूति ने उन्हें अपने जीवनकाल में ही चर्चित व्यक्तित्व बना दिया था। 1961 में गोवा की आज़ादी के बाद वे उसके पहले मुख्य नागरिक प्रशासक बने। वे 1963 में मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव नियुक्त हुए और मई, 1974 में उसी पद से सेवानिवृत्त हुए। पंजाब में वर्ष 1968 में और मध्य प्रदेश में 1977 में लगे राष्ट्रपति शासन के दौरान उन्हें राज्यपाल का सलाहकार नियुक्त किया गया था।

उनकी बेहतरीन सेवाओं का ध्यान रखकर वर्ष 1975 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया। 23 नवम्बर, 1982 को उनका देहावसान हुआ। उनकी स्मृति में मध्य प्रदेश सरकार ने अपनी शीर्षस्थ प्रशिक्षण संस्था-प्रशासन अकादमी का नामकरण उनके नाम पर किया है।

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