चर्चित और सर्वप्रिय कथाकार चन्दन पाण्डेय की ये कहानियाँ बहुत तेज़ी से बदल रही इस दुनिया और उसके साथ ही बदल रहे मानवीय, पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों के समीकरणों को बेहद निर्मम तटस्थता से उघाड़ती हैं। संग्रह की शीर्षक कथा ‘चोट’ में जो चोट है, वह अलग-अलग रूपों में संग्रह में शामिल सातों कहानियों में महसूस होती है। एक चोट है जो हममें से हर कोई या तो खा रहा है या किसी को दे रहा है।
‘चोट’ का अनिरुद्ध जिसने दफ़्तरी ऊब से ऊपर उठने और अपने तानाशाह-मिजाज़ अधिकारियों को चोट पहुँचाने का अपना एक खिलंदड़ा-सा तरीक़ा निकाला है, आख़िरकार अपने मक़सद में सफल तो होता है लेकिन नौकरी की क़ीमत पर। ‘दूब की वर्णमाला’ का नायक अपनी चोट के पीछे छिपकर ही गली के दबंगों से बचता है और अपने देनदारों से भी जो उसकी टाँग कटाकर ब्याज वसूलने की फ़िराक़ में थे।
‘गाँठ’ कहानी भी एक चोट पर ही ख़त्म होती है, जिसका लक्ष्य शहरी मध्यवर्ग की भीतरी जड़ता को तोड़ना है। ‘पितृपक्ष’ के जंगी पाण्डे की चोट तो शायद सबसे गहरी है। भारतीय समाज के जाति-समीकरणों में आए निर्णायक बदलाव को यह कहानी अत्यन्त कुशलता से चिन्हित करती है।
भाषा को नया करने और उसकी सम्प्रेषणीयता को वाक्य-दर-वाक्य विस्तृत करने की क्षमता चन्दन पाण्डेय की इन सभी कहानियों में बराबर दिखाई देती है। ‘शुभकामना का शव’ इस लिहाज से बेहद प्रभावशाली कहानी है; और अपनी विषय-वस्तु में इतनी भीषण कि आप सिहर उठते हैं।
‘वैधानिक गल्प’ और ‘कीर्तिगान’ जैसे उपन्यासों और कई असाधारण कहानियों से अपने कौशल का लोहा मनवा चुके चन्दन पाण्डेय का यह संग्रह निश्चय ही उनके पाठकों की उम्मीदों पर पूरा उतरेगा।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 152p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 20 X 13 X 1 |