Azad Ke Karname Vol-2

Editor: Shaoib Shahid
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Azad Ke Karname Vol-2
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रतननाथ सरशार की “आज़ाद के कारनामे” उर्दूअदब की एक शाहकार किताब है जो कुल छह हिस्सों में प्रकाशित हुई है। इस किताब में मियाँ आज़ाद और हज़रत ख़ोजी के क़िस्से हैं लखनऊ के रेलवे स्टेशनों, बाज़ारों और पटरियों की मंज़र-कशी है। अलग-अलग जगहों की सैर करते हुए मियाँ आज़ाद अजब-ग़ज़ब कारनामे करते हैं कई बार पढ़ने वालों को हैरत में डालती है तो कई बार उन्हें हँसाती और गुदगुदाती है।

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2022
Edition Year 2022, Ed, 1st
Pages 110p
Translator Not Selected
Editor Shaoib Shahid
Publisher Rajkamal Prakashan - Rekhta Books
Dimensions 19 X 12 X 1
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Author: Ratan Nath Sarshar

रतन नाथ सरशार
उर्दू के मुमताज़ अदीबों में एक अहम नाम पण्डित रतन नाथ सरशार की पैदाइश 05 जून, 1846 को लखनऊ में हुई। बचपन में ही वालिद के इन्तक़ाल और ग़ुरबत की वज्ह से कॉलेज की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके और एक स्कूल में पढ़ाने लगे। लिखने-पढ़ने का बे-इन्तेहा शौक़ रहते थे और जल्द ही नस्र लिखने लगे। उनके शुरूआती मज़ामीन “अवध पंच” और “मरासल-ए-कश्मीर” में शाए हुए। कुछ वक़्त बाद मुंशी नवल किशोर के ‘अवध अख़बार’ के सम्पादक हो गए और बाद में महाराजा कृष्ण प्रसाद की दावत पर हैदराबाद चले आए और यहाँ ‘दबदबा-ए-आसफ़ी’ के सम्पादन का काम सँभाला।
रतन नाथ सरशार की लिखी हुई ‘फ़साना-ए-आज़ाद’ की किस्तें ‘अवध अख़बार’ में शाए हुईं और देश भर के पढ़ने वाले उनके मुश्ताक़ हो गए। उनके मुरीदों में मशहूर मुसन्निफ़ प्रेमचंद भी शामिल थे जिन्होंने इस किताब का हिन्दी अनुवाद ‘आज़ाद कथा’ नाम से शाए किया। बाद में, इसको बुनियाद बनाकर शरद जोशी ने 80 के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित सीरियल ‘वाह जनाब’ की भी तख़्लीक़ की।
सरशार साहब का कमाल ये है कि उन्होंने मज़हबी मुआमलों को भी ध्यान में रखा और समाज के चित्रण के लिए अपने बयान में शिद्दत पैदा की। उन्होंने कई किताबें लिखीं जिनमें ‘शम्स-उल-ज़ुहा’, ‘जाम-ए-सरशार’, ‘आमाल-नामा-ए-रूस’, ‘सैर-ए-कुहसार’, ‘कामिनी’, ‘अलिफ़-लैला’, ‘ख़ुदाई फ़ौजदार’ अहम हैं। 27 जनवरी, 1903 को हैदराबाद में उन्होंने आख़िरी साँस ली।

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