Aalochana Ka Stree Paksha : Paddhati, Parampara Aur Paath

हिन्दी कविता और आलोचना की दुनिया लम्बे अरसे से ‘मुख्यधारा’ के इकहरे आख्यान से संचालित होती रही है, वह भी सवर्ण पुरुष-दृष्टि से। शिक्षा और संसाधनों पर उसका वर्चस्व साहित्य और कला को भी अपने ढंग से अनुकूलित करता रहा है। स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों और अन्य वंचित समूहों की अभिव्यक्तियाँ इसी आधार पर या तो विस्मृत कर दी गईं या हाशिये पर डाल दी गईं।
आलोचना का स्त्री पक्ष सुजाता को अस्मिता-विमर्श की संश्लिष्ट धारा की प्रतिनिधि के रूप में सामने लाती है। वह गहन शोध द्वारा इतिहास के विस्मृत पन्नों से दमित अभिव्यक्तियों की निशानदेही करती हैं और समकालीन सृजन की बारीक परख भी। वह सबसे पहले हिन्दी कविता की मुख्यधारा की जड़ता को उजागर करती हैं, फिर लोक और परम्परा में स्त्री-कविता के निशान ढूँढ़ते हुए उसे नाकाफ़ी पारम्परिक कैननों में रखे जाने पर सवाल उठाती हैं और उसे परखने की स्त्रीवादी आलोचना-दृष्टि प्रस्तावित करती हैं। यह किताब एक ज़रूरी हस्तक्षेप की तरह है जो हिन्दी आलोचना में एक ज़रूरी कैनन–स्त्रीवाद–को जोड़ती हुई उसे विमर्श के केन्द्र में ले आती है।
जहाँ वैश्विक स्तर पर हेलेन सिक्सू, लूस इरिगिरे, जूलिया क्रिस्टेवा जैसी आलोचकों ने स्त्री-भाषा को लेकर महत्त्वपूर्ण काम किए हैं, वहीं हिन्दी में अभी इस पर कुछेक अकादमिक काम के अलावा कोई ठोस बहस दिखाई नहीं देती। ऐसे में यह किताब ख़ासकर हिन्दी कविता और आम तौर पर भारतीय साहित्य में स्त्री-भाषा की समझ विकसित करने के लिए एक आवश्यक सैद्धान्तिक उपकरण उपलब्ध कराती है। साथ ही ‘आस्वाद की लैं गिक निर्मिति’ की सैद्धान्तिकी भी प्रस्तावित करती है।
पुस्तक का विशेष खंड वह है जिसमें सुजाता कुछ प्रमुख स्त्री कवियों के लेखन का विश्लेषण करते हुए स्त्रीवादी आलोचना की पद्धति भी प्रस्तावित करती हैं।
यह पुस्तक आलोचना की कथित मुख्यधारा को चुनौती भी है और वैकल्पिक, सर्वसमावेशी पद्धति का प्रस्ताव भी।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2021 |
Edition Year | 2021, Ed. 2nd |
Pages | 350p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 2.5 |
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