‘अग्निदीक्षा’ सोवियत संघ में समाजवादी युग के उस नए मनुष्य की कहानी है जो विराट मानवता के हित में हर संघर्ष, हर बलिदान के लिए तैयार है, जिसके लक्ष्य बड़े हैं, और उन्हें हासिल करने की ज़िद और भी बड़ी।
यह लेखक की अपनी ही ज़िन्दगी की कहानी है, लेकिन बस उतनी ही नहीं। इसके नायक पावेल कोर्चागिन के रूप में लेखक उस समूची पीढ़ी के चरित्र का अंकन करता है जो अपने समाज और व्यवस्था को नए सिरे से रचना चाहती है। सामाजिक और व्यक्तिगत आचरण के नये पैमाने स्थापित करना चाहती है।
रूसी साहित्य में इस कृति का विशेष स्थान है, सिर्फ़ इसलिए नहीं कि इसने नई दुनिया के नये नागरिक की परिभाषा गढ़ी, बल्कि इसलिए भी कि इसके लेखक निकोलाई ऑस्त्रोवस्की ने यह परिभाषा अपने जीवन के कड़े संघर्षों से गुज़रते हुए पाई थी। भीषण ग़रीबी और असहनीय शारीरिक पीड़ा के बीच समाजवादी विचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को अक्षुण्ण रखते हुए ऑस्त्रोवस्की जब यह उपन्यास लिख रहे थे; उस समय उनके सिर्फ़ हाथ सक्रिय रह गए थे।
नवम्बर 1930 में जब न उनकी आँखें रही थीं और न देह में शक्ति, उस समय उन्होंने इस पुस्तक पर काम करना शुरू किया था। कुछ हिस्सा लेखक ने स्वयं लिखा, और बाकी अपनी पत्नी, बहन और मित्रों को बोलकर लिखवाया। उनके लिए इस कृति का पूरा होना आवश्यक था, क्योंकि इसके नायक के रूप में वे नये युग के उस चरितनायक को साकार करना चाहते थे, जिसके माध्यम से उनकी कामना थी कि मृत्यु के बाद भी वे मनुष्यता की सेवा करते हुए अपने जीवन को सार्थकता दे सकें।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Translator | Amrit Rai |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 1954 |
Edition Year | 2025, Ed. 2nd |
Pages | 404p |
Publisher | Lokbharti Prakashan - Hans Prakashan |
Dimensions | 21 X 13.5 X 2 |