सैयद हैदर रज़ा को आधुनिक भारतीय चित्रकला का एक मूर्धन्य माना जाता है। आधी सदी से अधिक से पेरिस में रह रहे रज़ा का जन्म मध्य प्रदेश के एक जंगली इलाक़े में साधारण परिवार में हुआ था और वे कठिन संघर्ष और साधना से एक उज्ज्वल-उदात्त और विश्व स्तर के मुक़ाम पर पहुँचे थे। यह गाथा है साधारण की महिमा की, मटमैलेपन से उज्ज्वल तक पहुँचने की। उन्होंने अपने मित्र और हिन्‍दी कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी से पेरिस में जो आपबीती कही, वह इस पुस्तक का केन्द्रीय हिस्सा है। साथ ही, अशोक वाजपेयी ने लगभग तीन दशकों में इस अदि्वतीय कलाकार की कला और ज़िन्दगी पर जो कुछ लिखा है, वह भी यहाँ एकत्र है जैसे कि उनकी वह लम्बी कविता ‘रजा का समय’ भी जो रज़ा की अस्सीवीं वर्षगाँठ के लिए लिखी गई थी। रज़ा से उनकी कला के बारे में लम्बी बातचीत भी संग्रहीत है। ‘आत्मा का ताप’ एक श्रेष्ठ कलाकार और पारदर्शी व्यक्ति की ज़िन्दगी और कला पर हिन्‍दी में अपने ढंग की पहली और अनूठी पुस्तक है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2004
Pages 212p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Saiyed Haider Raza

Author: Saiyed Haider Raza

सैयद हैदर रज़ा

सैयद हैदर रज़ा का जन्म 1922 में मध्य प्रदेश में हुआ था और उन्होंने नागपुर स्कूल ऑफ़ आर्ट तथा सर जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट में पेंटिंग की पढ़ाई की। 1950 में फ़्रेंच सरकार की वृत्ति मिलने के बाद वे इकोले नेशनले देस ब्यू आर्ट्स, पेरिस चले गए। 1956 में रज़ा को ‘प्रिक्स दे ला क्रिटिक पुरस्कार’ मिला। 1962 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया बर्कले, अमेरिका में अतिथि व्याख्याता के रूप में सेवाएँ दी।

रज़ा ‘प्रगतिशील कलाकार समूह’ के संस्थापकों में एक थे, जिसकी स्थापना उन्होंने के.एच. आरा और एफ़.एन. सूजा के साथ की थी। उन्होंने अनेक प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया, जिनमें साओ पाउलो बिनाले—1958, 1966, 1968 तथा 1978 में फ्रांस में बिनाले दे मेंटन में तथा रॉयल अकादेमी ऑफ़ लन्दन की कंटेम्पररी इंडियन पेंटिंग की प्रदर्शनी में भी हिस्सा लिया, जो 1982 में आयोजित की गई थी।

दिसम्बर 1978 में मध्य प्रदेश की सरकार ने उनको अपने गृह राज्य में सम्मान देने के लिए तथा भोपाल में कलाकृतियों की प्रदर्शनी के लिए आमंत्रित किया। 1983 में वे ‘ललित कला अकादेमी’ के फ़ेलो निर्वाचित किए गए। 1997 में रज़ा साहब को मध्य प्रदेश सरकार का प्रतिष्ठित ‘कालिदास सम्मान’ दिया गया।

1981 में उनको भारत के राष्ट्रपति ने ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया, 2007 में ‘पद्मभूषण’ तथा 2013 में ‘पद्म-विभूषण’ से। 23 जुलाई, 2016 को उनका निधन हुआ।

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