1857 : Awadh Ka Muktisangram-Paper Back

Special Price ₹93.75 Regular Price ₹125.00
25% Off
In stock
SKU
9789389598308
- +
Share:

यशस्वी पत्रकार और विद्वान लेखक अखिलेश मिश्र की यह पुस्तक एक लुटेरे साम्राज्यवादी शासन के ख़िलाफ़ अवध की जनता के मुक्ति-युद्ध की दस्तावेज़ है। अवध ने विश्व की सबसे बड़ी ताक़त ब्रिटेन का जैसा दृढ़ संकल्पित प्रतिरोध किया और इस प्रतिरोध को जितने लम्बे समय तक चलाया, उसकी मिसाल भारत के किसी और हिस्से में नहीं मिलती। पुस्तक 1857 की क्रान्ति में अवध की साँझी विरासत हिन्दू-मुस्लिम एकता को भी रेखांकित करती है। इस लड़ाई ने एक बार फिर इस बात को उजागर किया था कि हिन्दू-मुस्लिम एकता की बुनियादें बहुत गहरी हैं और उन्हें किसी भेदनीति से कमज़ोर नहीं किया जा सकता। आन्‍दोलन की अगुवाई कर रहे मौलवी अहमदुल्लाह शाह, बेगम हजरत महल, राजा जयलाल, राणा वेणीमाधव, राजा देवी बख्श सिंह में कौन हिन्दू था, कौन मुसलमान? वे सब एक आततायी साम्राज्यवादी ताक़त से आज़ादी पाने के लिए लड़नेवाले सेनानी ही तो थे। इस मुक्ति-संग्राम का चरित प्रगतिशील था। न केवल इस संग्राम में अवध ने एक स्त्री बेगम हजरत महल का नेतृत्व खुले मन से स्वीकार किया, बल्कि हर वर्ग, वर्ण और धर्म की स्त्रियों ने इस क्रान्ति में अपनी-अपनी भूमिका पूरे उत्साह से निभाई, चाहे वह तुलसीपुर की रानी राजेश्वरी देवी हों अथवा कुछ वर्ष पूर्व तक अज्ञात वीरांगना के रूप में जानी जानेवाली योद्धा ऊदा देवी पासी। अवध के मुक्ति-संग्राम की अग्रिम पंक्ति में भले ही राजा, ज़मींदार और मौलवी रहे हों, लेकिन यह उनके साथ कन्‍धे से कन्‍धा मिलाकर लड़ रहे किसानों और आम जनता का जुझारूपन था जिसने सात दिनों के भीतर अवध में ब्रिटिश शासन को समाप्त कर दिया था। यह पुस्तक 1857 के जनसंग्राम के कुछ ऐसे ही उपेक्षित पक्षों को केन्‍द्र में लाती है। आज 1857 के जनसंग्राम को याद करना इसलिए ज़रूरी है कि इतिहास सिर्फ़ अतीत का लेखा-जोखा नहीं, वह सबक भी सिखाता है। आज भूमंडलीकरण के इस दौर में जब बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की लूट का जाल आम भारतीय को अपने फन्‍दे में लगातार कसता जा रहा है, ईस्ट इंडिया कम्‍पनी से लोहा लेनेवाले, उसे एक संक्षिप्त अवधि के लिए ही सही, पराजित करनेवाले वर्ष 1857 से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2020
Edition Year 2022, Ed 2nd
Pages 164p
Price ₹125.00
Translator Not Selected
Editor Vandana Mishra
Publisher Rajkamal Prakashan - Akshar
Dimensions 20 X 12.9 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:1857 : Awadh Ka Muktisangram-Paper Back
Your Rating
Akhilesh Mishra

Author: Akhilesh Mishra

अखिलेश मिश्र

जन्म : 22 अक्तूबर, 1922; सेमरौता, रायबरेली (उ.प्र.)।

विश्वविद्यालय में अध्यापन के प्रस्तावों को ठुकराकर हिन्दी पत्रकारिता को अपना पेशा बनाया, क्योंकि ‘जनता के पहरुए कूकुर’ की भूमिका पसन्‍द थी। ‘अधिकार’ से पत्रकारिता आरम्‍भ कर वे ‘स्वतंत्र भारत’, ‘दैनिक जागरण’, ‘स्वतंत्र चेतना’, ‘स्वतंत्र मत’ आदि दैनिक समाचार-पत्रों के सम्पादक रहे। साक्षरता अभियान में उनका अमूल्य योगदान रहा।

समय-समय पर उन्हें अनेक पुरस्कार-सम्मान दिए गए, लेकिन उन्होंने कोई सम्मान स्वीकार नहीं किया।

पुस्तकें : ‘धर्म का मर्म’, ‘पत्रकारिता : मिशन से मीडिया तक’ तथा ‘पाँवों का सनीचर के अलावा साक्षरता अभियान के तहत लिखी गई कई पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें कुछ हैं : ‘मुक़द्दर की मौत’, ‘गाँव में जादूगर’, ‘बन्‍द गोभी का नाच’, ‘प्रधान का इलाज’ आदि। कुछ अनुवाद भी प्रकाशित जिनमें ‘अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के मूल तत्त्व’ (मार्ग्रेट तथा हेराल्ड स्प्राउट कृत), ‘लालबहादुर शास्त्री’, ‘मार्क्स तथा आधुनिक सामाजिक सिद्धान्‍त’ (एलेन स्विंजवुड) उल्लेखनीय हैं।

शोध-पत्र : ‘ए फैलेसी फेस्ड’ (2002 में लखनऊ विश्वविद्यालय में जमा किया गया)।

अन्तिम समय तक लेखन के साथ-साथ जनान्‍दोलनों में भी सक्रिय भागीदारी। मानवाधिकारों के लिए सतत् संघर्षशील रहे। लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में विजिटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे।

निधन : 22 नवम्बर, 2002 (लखनऊ)।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top