फ़िराक़ गोरखपुरी बीसवीं शताब्दी के कालजयी शख़्सियत के मालिक हैं, स्वतंत्रता आन्दोलन से लेकर प्रगतिशील आन्दोलन तक जुड़े रहने के कारण एवं अंग्रेज़ी साहित्य के अध्यापक होने के कारण उनकी शायरी में एक नया रंग उभरकर आया जिसे
प्रो. फ़ातमी ने बड़े व्यापक ढंग से प्रस्तुत किया है। उनकी ग़ज़लों, नज़्मों ने प्रगतिवाद एवं मार्क्सवाद पर एक नई बहस छेड़ी है और उनकी सियासी ज़िन्दगी के कुछ नए तथ्य तलाश किए हैं। यह किताब एक नए फ़िराक़ को समझने में सहायक बनती है।
पाठकों द्वारा उर्दू में प्रकाशित इस पुस्तक को बेहद पसन्द किया गया, अब इसका हिन्दी संस्करण प्रस्तुत है जो निःसन्देह पठनीय एवं संग्रहणीय है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2011 |
Edition Year | 2011, Ed. 1st |
Pages | 172p |
Price | ₹250.00 |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1.5 |