Satya Ke Mere Prayog-Paper Back

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विश्व के स्वप्नदर्शी और युगांतरकारी नेताओं में सर्वाधिक चर्चित और देश-काल की सीमाओं को लांघकर एक प्रतीक बन जानेवाले महात्मा गांधी की यह आत्मकथा न किसी परिचय की मुहताज है और न किसी प्रशंसा की। अनेक भाषाओं और देशों के असंख्य पाठकों के मन में राजनीति, समाज और नैतिकता से जुड़े सवालों को जगाने, विचलित करनेवाली इस पुस्तक का यह मूल गुजराती से अनूदित प्रामाणिक पाठ है।

समाज और राजनीति की धारा में गांधी जी ने असहयोग और अहिंसा जैसे व्यावहारिक औज़ारों से एक मानवीय हस्तक्षेप किया, वहीं अपने निजी जीवन को उन्होंने सत्य, संयम और आत्मबल की लगभग एक प्रयोगशाला की तरह जिया। नैतिकता उनके लिए सिर्फ़ समाजोन्मुख, बाहरी मूल्य नहीं, उनके लिए वह अपने अन्त:करण के पारदर्शी आइने में एक ऐसे नग्न प्रश्न के रूप में खड़ी थी, जिसका जवाब व्यक्ति को अपने सामने, अपने को ही देना होता है। अपने स्व की कसौटी ही जिसकी एकमात्र कसौटी होती है। यह पुस्तक गांधी जी के इसी अविराम नैतिक आत्मनिरीक्षण की विवरणिका है।

इस चर्चित पुस्तक की पुनर्प्रस्‍तुति यह बात ध्यान में रखते हुए की जा रही है कि महान कृतियों का अनुवाद बार-बार होते रहना चाहिए। इस अनुवाद में प्रयास किया गया है कि गांधी जी की इस सर्वाधिक पढ़ी जानेवाली कृति को आज का पाठक उस भाषा-संवेदना की रोशनी में पढ़ सके जो आज़ादी के बाद हमारी चेतना का हिस्सा बनी है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2013
Edition Year 2023, Ed. 5th
Pages 368p
Price ₹399.00
Translator Suraj Prakash
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2.5
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Mohandas Karamchand Gandhi

Author: Mohandas Karamchand Gandhi

मोहनदास करमचन्द गांधी

जन्म : 2 अक्टूबर, 1869; पोरबन्दर, काठियावाड़, गुजरात।

शिक्षा : युनिवर्सिटी कॉलेज, लन्‍दन।

मोहनदास करमचन्द गांधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। विश्व-भर में लोग उन्हें महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं। गांधी जी ने अहिंसक 'सविनय अवज्ञा’ का अपना राजनीतिक औज़ार प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष हेतु प्रयुक्त किया। 1915 में भारत वापसी के बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, कृषि-मज़दूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए एकजुट किया। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर सँभालने के बाद उन्होंने देश-भर में ग़रीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण, आत्मनिर्भरता हेतु अस्पृश्यता का अन्त आदि के लिए बहुत से आन्दोलन चलाए; किन्तु इन सबसे अधिक स्वराज की प्राप्ति उनका प्रमुख लक्ष्य था। गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाए गए 'नमक कर’ के विरोध में 1930 में 'दांडी मार्च’ और इसके बाद 1942 में 'अँग्रेज़ो, भारत छोड़ो’ आन्दोलन से भारतीयों का नेतृत्व कर प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में रहना पड़ा।

निधन : 30 जनवरी, 1948

 

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