Prakrati Aur Prakratish-Hard Cover

Author: Vinod Bhardwaj
Special Price ₹1,020.00 Regular Price ₹1,200.00
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ISBN:9788126720019
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9788126720019

परमजीत सिंह (जन्म : 1935) देश के उन महत्त्वपूर्ण आधुनिक चित्रकारों में से हैं जिन्होंने अपने समय के प्रचलित आधुनिक मुहावरों की चिन्ता न करके अपना एक अलग और लम्बा रास्ता खोजा है। पिछले 55 से भी अधिक सालों में एक अद्भुत समर्पण, एकाग्रता और निजी आग्रहों के प्रति एक गहरी निष्ठा से वह अपनी कला भाषा को विकसित करते रहे हैं। एक समय उनकी कला पर अतियथार्थवादी (सररियलिस्ट) चित्र भाषा का असर था पर धीरे-धीरे उन्होंने अपने प्रकृति प्रेम को कलाकार की गहरी आध्यात्मिक साधना में रूपान्तरित कर दिया है। ‘प्रकृति और प्रकृतिस्थ’ पुस्तक में परमजीत सिंह के जीवन, विकास और कला सरोकारों की गहरी छानबीन की गई है। लेखक ने कलाकार से अनेक लम्बी अनौपचारिक भेंटवार्ताओं के अलावा परमजीत की निजी आर्काइव और उनके दौर के कलाकारों और कला समीक्षकों से बातचीत करके इस एक बड़े कलाकार की दुनिया को कला-प्रेमियों के सामने प्रस्तुत किया है। परमजीत सिंह की कला में लैंडस्केप केन्द्र में है पर उन्होंने लैंडस्केप कला को एक नई गरिमा और पहचान दिलाई है। उनके लैंडस्केप सुन्दर दृश्यों की स्मृतियाँ मात्र नहीं हैं, उनमें एक रहस्यमय दुनिया में प्रवेश की दुर्लभ कुंजियाँ हैं और चिन्ता व आशंका का एक अद्वितीय संसार भी है। आशंका की आहटें उनके लैंडस्केप चित्रों को अपने समय का स्मरणीय दस्तावेज़ बना देती हैं। इस पुस्तक में कलाकार और उनके मित्रों-स्वजनों के अनेक दुर्लभ चित्र हैं, विभिन्न चरणों में किए गए कलाकार के काम का एक प्रतिनिधि चयन है और आज़ादी के बाद के उस दौर को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने की एक सार्थक कोशिश है जो परमजीत की कला के विकास में निर्णायक साबित हुई।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Edition Year 2011
Pages 163p
Price ₹1,200.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Vinod Bhardwaj

Author: Vinod Bhardwaj

विनोद भारद्वाज

जन्म : 1948 लखनऊ में।

विनोद भारद्वाज ने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1971 में मनोविज्ञान में एम.ए. के बाद टाइम्स ऑफ़ इंडिया के हिन्दी प्रकाशनों में पत्रकारिता शुरू की। वहाँ 25 सालों की नौकरी में धर्मयुग, दिनमान और नवभारत टाइम्स सरीखे प्रकाशनों में फ़िल्म, कला, संस्कृति, साहित्य आदि पर नियमित लिखा। 1967-69 में कविता-कला की लघु पत्रिका ‘आरम्भ’ का सम्पादन किया। 1981 में उन्हें कविता के लिए भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार और सर्जनात्मक लेखन के लिए प्रतिष्ठित संस्कृति पुरस्कार मिला। 1989 में उन्हें लेनिनग्राद (तत्कालीन सोवियत संघ) के पहले अन्तरराष्ट्रीय ग़ैर कथा फ़िल्म महोत्सव की ज्यूरी का सदस्य चुना गया। ‘जलता मकान’, ‘होशियारपुर’ (कविता-संग्रह); ‘नया सिनेमा’, ‘समय और सिनेमा’, ‘सिनेमा : कल, आज, कल’ (फ़िल्म पर पुस्तकें); ‘समकालीन भारतीय कला : एक अन्तरंग अध्ययन’, ‘कला के सवाल’, ‘कला-चित्रकला’, ‘वृहद आधुनिक कला कोश’, ‘रामचन्द्रन कला संसार’ (कला पर पुस्तकें); ‘चितेरी’ (कहानी-संग्रह); ‘समय सच्चाई और सपने’ (टिप्पणियाँ और स्तम्भ) और ‘संस्कृति संवाद’ (भेंटवार्ताएँ) आदि विनोद भारद्वाज के प्रमुख प्रकाशन हैं। धूमीमल गैलरी के सूजा के विशाल संग्रह के कैटलॉग (अंग्रेज़ी) का उन्होंने सम्पादन भी किया है। राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, विदेश मंत्रालय, यू.जी.सी., दूरदर्शन और धलिमल गैलरी आदि के लिए वह तीस से अधिक कला फ़िल्मों के सब्जेक्ट एक्सपर्ट रह चुके हैं। ललित कला अकादेमी की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर उन्होंने ‘आर्ट इन सिनेमा’ नाम के चर्चित कार्यक्रम को क्यूरेट किया, ‘समकालीन कला’ के दो अंकों का अतिथि सम्पादन किया और ‘कलाएँ आसपास’ पुस्तक का सम्पादन किया।

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