Chhattisgarh Mein Muktibodh-Hard Cover

Author: Rajendra Mishra
Special Price ₹467.50 Regular Price ₹550.00
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ISBN:9788126727162
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छत्तीसगढ़ मुक्तिबोध की परिपक्व सर्जनात्मकता का अन्तरंग है। सिर्फ़ इस अर्थ में नहीं कि यहाँ आकर उन्हें रचने और जीने की अपेक्षाकृत शान्त अवकाश मिला, बल्कि इस गहरे अर्थ में कि यहाँ आकर उन्हें आत्मसंघर्ष की वह दिशा मिली, जिस पर चलकर वे अपनी रचना में उन लोगों के संघर्ष का भी सृजनात्मक आत्मसातीकरण सम्भव कर सके, जिनका जीवन सहज-सरल अर्थ में संघर्ष का ही जीवन था। उनके संवेदनात्मक ज्ञान और ज्ञानात्मक संवेदना की रचना के लिए यहाँ का परिवेश, यहाँ के लोग, यहाँ के तालाब, यहाँ के वृक्ष, यहाँ का समूचा साँवला समय उन्हें अँधेरे की आत्मीय आवाज़ में पुकारते थे, और बहुवाचकता से भरे इन स्वरों और पुकारों को, वे अपने सृजन क्षणों में इस तरह सुनते थे, जैसे वे उनकी अपनी धड़कनों में बसी आवाज़ें हैं, जैसे वे अँधेरे में कहीं हमेशा के लिए खो गई अनजानी ज्योति को जगाने के लिए ही उनके क़रीब आ रही हैं।

बिम्बात्मकता के स्तर पर राजनांदगाँव के परिवेश के अनेक दृश्यों को उनकी कविता की बहुविध भावनाओं, विचारों की विविधरंगी भाषा में सहज ही पढ़ा जा सकता है, लेकिन इसके भीतर हर कहीं आत्मीयता और प्रेम की जो अन्त:सलिला है, उसमें मानो यहाँ की वह पूरी बिरादरी ही समाई हुई है, जिसके साथ उन्होंने रात-रात भर बातें की थीं। इसी गहरे प्रेम के अर्थ में ही उन्होंने इस भयावह संसार की मानवीय और मानवेतर उपस्थितियों के साथ एक अटूट रिश्ता बनाया था। इसी रिश्ते ने उन्हें अपने आत्मसंघर्ष की एक सर्वथा नई पहचान का वह रास्ता सुझाया था, जिस पर अनथक चलते हुए वे अनुभव कर पाए थे, कि नहीं होती, कहीं भी कविता ख़तम नहीं होती।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 292p
Price ₹550.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Author: Rajendra Mishra

राजेन्द्र मिश्र

जन्म : 17 सितम्बर, 1937; अरजुन्दा (छत्तीसगढ़)।

शिक्षा : मॉरेस कॉलेज, नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर से एम.ए. और सागर विश्वविद्यालय से पी-एच.डी.।

कार्यक्षेत्र : स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य-पद से 1997 में सेवानिवृत्त। म.प्र. शासन

द्वारा पं. रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर में स्थापित पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी शोध-पीठ के पहले अध्यक्ष। हिन्दी अध्ययनशाला की शुरुआत। पहले मानसेवी अध्यक्ष।

प्रमुख कृतियाँ : ‘आधुनिक हिन्दी-काव्य’, ‘समकालीन कविता : सार्थकता और समझ’, ‘नई कविता की पहचान’, ‘हद-बेहद के बीच’, ‘केवल एक लालटेन के सहारे’ (मुक्तिबोध : एक अन्तर्कथा); सम्पादन : ‘एकत्र’, ‘श्रीकान्त वर्मा का रचना-संसार’, ‘श्यामा-स्वप्न’, ‘शुरुआत’, ‘श्रीकान्त वर्मा-चयनिका’, ‘अभिज्ञा तिमिर में झरता समय’, ‘छत्तीसगढ़ में मुक्तिबोध’ आदि। ‘अक्षर-पर्व’ रचना-वार्षिकी के तीन अंकों के अतिथि सम्पादक।

स्तम्भ लेखन : ‘सबद निरन्तर : लोकमत’, नागपुर।

सम्मान : ‘मुक्तिबोध सम्मान’, ‘बख्शी सम्मान’, ‘महाकोशल कला-परिषद का सम्मान’ आदि।

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