Amar Shaheed Chandrashekhar Azad-Paper Back

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वैशम्पायन ने आज़ाद की एक मनुष्य, एक साथी और क्रान्तिकारी पार्टी के सुयोग्य सेनापति की छवि को विस्तार देते हुए उनके सम्पूर्ण क्रान्तिकारी योगदान के सार्थक मूल्यांकन के साथ ही आज़ाद के अन्तिम दिनों में पार्टी की स्थिति, कुछेक साथियों की गद्दारी और आज़ाद की शहादत के लिए ज़‍िम्मेदार तत्त्वों का पर्दाफाश किया है। अपनी पुस्तक में वैशम्पायन जी बहुत निर्भीकता से सारी बातें कह पाए हैं। उनके पास तथ्य हैं और तर्क भी। आज़ाद से उनकी निकटता इस कार्य को और भी आसान बना देती है। आज़ाद और वैशम्पायन के बीच सेनापति और सिपाही का रिश्ता है तो अग्रज और अनुज का भी। वे आज़ाद के सर्वाधिक विश्वस्त सहयोगी के रूप में हमें हर जगह खड़े दिखाई देते हैं। आज़ाद की शहादत के बाद यदि वैशम्पायन न लिखते तो आज़ाद के उस पूरे दौर पर एक निष्पक्ष और तर्कपूर्ण दृष्टि डालना हमारे लिए सम्भव न होता। एक गुप्त क्रान्तिकारी पार्टी के संकट, पार्टी का वैचारिक आधार, जनता से उसका जुड़ाव, केन्द्रीय समिति के सदस्यों का टूटना और दूर होना तथा आज़ाद के अन्तिम दिनों में पार्टी की संगठनात्मक स्थिति जैसे गम्भीर मुद्दों पर वैशम्पायन जी ने बहुत खरेपन के साथ कहा है। वे स्वयं भी एक क्रान्तिकारी की कसौटी पर सच्चे उतरे हैं। आज़ाद के साथ किसी भी कठिन परीक्षा में वे कभी अनुत्तीर्ण नहीं हुए। आज़ाद को खोकर वैशम्पायन ने कितना अकेलापन महसूस किया, इसे उनकी इस कृति में साफ़-साफ़ पढ़ा जा सकता है। आज़ाद-युग पर वैशम्पायन जी की यह अत्यन्त विचारोत्तेजक कृति है जो आज़ाद की तस्वीर पर पड़ी धूल को हटाकर उनके क्रान्तिकारित्व को सामने लाने का ऐतिहासिक दायित्व पूरा करती है।

—सुधीर विद्यार्थी

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2017
Edition Year 2022, Ed. 4th
Pages 338p
Price ₹399.00
Translator Not Selected
Editor Sudhir Vidyarthi
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Vishwanath Vaishampayan

Author: Vishwanath Vaishampayan

विश्‍वनाथ वैशम्पायन

विश्‍वनाथ वैशम्पायन का जन्‍म 27 नवम्‍बर, 1910 को उत्‍तर प्रदेश के ज़िला बांदा में हुआ था। पिताजी के सरकारी नौकरी में होने की वजह से वे झाँसी आ गए जहाँ सरस्‍वती पाठशाला में पढ़ाई के दौरान अपने ड्राइंग मास्‍टर रुद्रनारायण के सम्‍पर्क में आने पर उनका सम्‍बन्‍ध चन्‍द्रशेखर आज़ाद और इन्‍क़लाबी दल से हो गया। उनकी चन्‍द्रशेखर आज़ाद पर लिखी गई पुस्‍तक ‘अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद’ का प्रथम भाग 1965 में तथा दूसरा व तीसरा भाग 1967 में प्रकाशित हुआ जो एक बहुमूल्‍य कृति है।

विश्‍वनाथ वैशम्पायन का निधन 20 अक्‍टूबर, 1967 में हुआ।

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