Aankhon Mein Uljhi Dhoop

Poetry
Author: Amita Sharma
You Save 30%
Out of stock
Only %1 left
SKU
Aankhon Mein Uljhi Dhoop

ये कविताएँ कुछ हद तक ‘पर्सनल पोएम्स’ हैं, निजी कविताएँ। जैसे व्यक्तिगत काव्य-डायरियाँ। इनका ‘मैं’ कोई पराया ‘मैं’ नहीं। पूरी तरह आत्मकथात्मक ‘मैं’ भी नहीं। यह एक अन्दर की कहीं छिपी-ढँकी इच्छा के कविता में प्रकट होने की प्रक्रिया में आकार लेता ‘मैं’ है। सपनों का ‘मैं’। कविता में सपना देखनेवाला ‘मैं’। ये कविताएँ निर्द्वंद्व मानवीय सम्बन्धों की ऊष्मा का प्रगीत हैं। अपने बेहद निजी, दैहिक सम्बन्ध को भी प्रकृति के पूरे वैभव और समूचे ब्रह्मांड के साथ विमर्श में पाने की लालसा इन कविताओं में है। इहलौकिक सम्‍बन्‍धों के बारे में कोई मुखरता यहाँ नहीं है, पर कोई अन्तर्बाधा भी नहीं। यह एक ऐसा अप्रतिम और अनाम सम्‍बन्‍ध है जैसे आकाश में चिड़िया की उड़ान होती है जो हवा पर अपने पदचिह्न नहीं छोड़ती। इन कविताओं में लौकिक और अलौकिक के बीच सहज आवाजाही है। इसलिए कोई मिथक यहाँ आता भी है तो उसकी सिर्फ़ हल्की-सी पदचाप ही सुनाई पड़ती है। इन कविताओं में शब्द की चिन्ता और शब्द की काया का स्वीकार बहुत दिलचस्प भी है और अलग-सा भी। ये शब्द की आज़ादी और मौन के साहस, दोनों को जानती हैं। वे शब्द और देह को एक-दूसरे के विकल्प की हद तक देखने और उसे एक-दूसरे की जगह रखने की कोशिश करती हैं। ये कविताएँ एक ऐसा दिक् रचती हैं जहाँ किसी अनुपस्थित की अदेह उपस्थिति है। उस अनुपस्थित के शब्दों की गूँज है। उसके स्पर्श का अहसास है। देहदीन देह की ख़ामोशी है। अनुपस्थित समय है। एक स्टिललाइफ़ जैसा चित्र, जिसमें हर चीज़ पर किसी अनुपस्थित की छाप भी है और उसके किसी भी क्षण आ जाने की संभावना है। इन कविताओं की खनक में चुप और बातूनीपन का दुर्लभ सन्तुलन है। इसे सुनना थोड़ा अटपटा हो सकता है, पर कहना चाहता हूँ कि यह सन्‍तुलन किसी स्त्री की कविता में ही सम्भव हो सकता है।

—राजेश जोशी

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1998
Pages 102p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:Aankhon Mein Uljhi Dhoop
Your Rating

Editorial Review

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here

Amita Sharma

Author: Amita Sharma

अमिता शर्मा

सन् 1955; इलाहाबाद में जन्म।

एम.ए. (अंग्रेज़ी) राजस्थान विश्वविद्यालय से।

राजस्थान विश्वविद्यालय में अध्यापन। फिर भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन।

समकालीन साहित्य और सैद्धान्तिक समीक्षा में रुचि।

‘शालभंजिका’, ‘अलग घर बारिश’, ‘मेरी क़िस्‍सागोई’, ‘आँखों में उलझी धूप’, ‘हमारे झूठ भी हमारे नहीं’, ‘शून्‍य की आँख’ (कविता-संग्रह)। कविताएँ, कहानियाँ हिन्दी और अंग्रेज़ी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।

 

Read More
Books by this Author

Back to Top