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Television Ki Kahani : Part-1-Hard Cover

Special Price ₹722.50 Regular Price ₹850.00
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टेलीविज़न की कहानी वर्तमान समय सूचना-समाचारों के विस्फोट का है। हर घर-आँगन में चौबीस घंटे की टेलीविज़न-उपस्थिति है। चकमक करती रौशनियाँ हैं, दमक-हुमक-भरे चेहरे हैं। हर्ष, विषाद, रुदन की आक्रामकता है। कहीं समाचार, कहीं फ़िल्म और घर-घर की कहानी बयान करते रंग-बिरंगे धारावाहिक। लेकिन क्या आप जानते हैं, इस चमक-दमक के आविष्कारक कौन थे? टेलीविज़न का कब और कैसे आविष्कार हुआ? टेलीविज़न के अतीत-वर्तमान को ही जानने-समझने का सार्थक प्रयत्न करती है यह पुस्तक। वरिष्ठ लेखक-पत्रकार डॉ. श्याम कश्यप और चर्चित युवा टीवी पत्रकार मुकेश कुमार की क़लम-जुगलबन्दी ने टेलीविज़न की कहानी को आप तक पहुँचाने का सफल प्रयास किया है।

टेलीविज़न के विभिन्न आयामों का समावेश करती इस पुस्तक में कुल बारह अध्याय हैं, जिनमें टेलीविज़न की ईजाद और उसके क्रमिक विकास की कहानी के साथ उनके विशिष्ट आन्तरिक संरचना, चरित्र और सामाजिक प्रभावों की भी प्रभावी पड़ताल की गई है। इसमें प्रसंगवश उन तमाम समकालीन प्रश्नों से भी मुठभेड़ करने का प्रयास किया गया है, जिनका सामना टीवी पत्रकार को अक्सर करना पड़ता है।

पुस्तक में टीवी पत्रकारिता से जुड़ी उन तमाम बातों का ज़िक्र है, जिसकी ज़रूरत इस क्षेत्र के छात्रों और पत्रकारों को पड़ती है। यह पुस्तक उन लोगों के लिए मददगार साबित होगी। न सिर्फ़ छात्रों और पत्रकारों के लिए बल्कि आम पाठक, जो टेलीविज़न के इतिहास और उसके संसार को जानना और समझना चाहते हैं, उनके लिए भी उपयोगी और रुचिकर पुस्तक।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 267p
Price ₹850.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 24.5 X 18.5 X 2
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Author: Shyam Kashyap

श्याम कश्यप

जन्म : 21 नवम्बर, 1948; नवाँशहर दोआबा (पंजाब)।

शिक्षा : एम.ए. (राजनीति विज्ञान), पीएच.डी. (पत्रकारिता एवं जनसंचार)।

वृत्ति : पत्रकारिता एवं विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य।

प्रमुख कृतियाँ : ‘गेरू से लिखा हुआ नाम’ (कविता-संग्रह); ‘मुठभेड़’, ‘सृजन और संस्कृति’, ‘साहित्य की समस्याएँ और प्रगतिशील दृष्टिकोण’ तथा ‘मार्क्स, एलिएनेशन सिद्धान्त और साहित्य’ (आलोचना)।

सम्पादित कृतियाँ : ‘परसाई रचनावली’ (सहयोगियों के साथ मिलकर), ‘हिन्दी की प्रगतिशील आलोचना’, ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास : पुनर्लेखन की समस्याएँ’, ‘हरिशंकर परसाई : संकलित रचनाएँ’, डॉ. रामविलास शर्मा की ‘इतिहास और समकालीन परिदृश्य’, शृंखला की चारों पुस्तकें— (‘स्वाधीनता संग्राम : बदलते परिप्रेक्ष्य’, ‘भारतीय इतिहास और ऐतिहासिक भौतिकवाद’, ‘पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद’ तथा ‘भारतीय नवजागरण और यूरोप’), ‘रास्ता इधर है’ और विख्यात पत्रिका ‘पहल’ का ‘फासीवाद-विरोधी विशेषांक’।

निधन : 15 नवम्बर, 2018

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