Pratinidhi Kavitayen : Manglesh Dabral-Paper Back

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ISBN:9788126729968
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आलोकधन्वा कहते हैं कि ‘मंगलेश फूल की तरह नाज़ुक और पवित्र हैं।’ निश्चय ही स्वभाव की सचाई, कोमलता, संजीदगी, निस्पृहता और युयुत्सा उन्हें अपनी जड़ों से हासिल हुई है, पर इन मूल्यों को उन्होंने अपनी प्रतिश्रुति से अक्षुण्ण रखा है।
मंगलेश डबराल की काव्यानुभूति की बनावट में उनके स्वभाव की केन्द्रीय भूमिका है। उनके अन्दाज़े-बयाँ में संकोच, मर्यादा और करुणा की एक लर्ज़िश है। एक आक्रामक, वाचाल और लालची समय में उन्होंने सफलता नहीं, सार्थकता को स्पृहणीय माना है और जब उनका मन्तव्य यह हो कि मनुष्य होना सबसे बड़ी सार्थकता है, तो ऐसा नहीं कि यह कोई आसान मकसद है, बल्कि सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि यह आसानी कितनी दुश्वार है।

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2017
Edition Year 2023, Ed. 4th
Pages 152p
Price ₹150.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 17.5 X 12 X 1
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Mangalesh Dabral

Author: Mangalesh Dabral

मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई, 1948 को उत्तराखंड के टिहरी ज़िले के गाँव काफलपानी में हुआ।

‘प्रतिपक्ष’, ‘आसपास’, ‘पूर्वग्रह’, ‘जनसत्ता’ और ‘सहारा समय’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में लम्बे समय तक काम करने के बाद वे तीन वर्ष तक नेशनल बुक ट्रस्ट के सलाहकार रहे। उनके पाँच कविता-संग्रह—‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’, ‘नए युग में शत्र’; तीन गद्य-संग्रह—‘एक बार आयोवा’, ‘लेखक की रोटी’, ‘कवि का अकेलापन’ और साक्षात्कारों का संकलन प्रकाशित हैं। उन्होंने बेर्टोल्ट ब्रेश्ट, हांस माग्नुस ऐंत्सेंसबर्गर (जर्मन), यानिस रित्सोस (यूनानी), ज़्बग्नीयेव हेर्बेत, तादेऊष रोज़ेविच (पोलस्की), पाब्लो नेरुदा, एर्नेस्तो कार्देनाल (स्पानी), डोरा गाबे, स्तांका पेंचेवा (बल्गारी) आदि की कविताओं का अंग्रेजी से अनुवाद। वे जर्मन उपन्यासकार हेरामन हेस्से के उपन्यास ‘सिद्धार्थ’, अरुंधति रॉय के उपन्यास ‘अपार ख़ुशी का घराना’ के अनुवादक और बांग्ला किव नबारुण भट्टाचार्य  के संग्रह ‘यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश’ के सह-अनुवादक रहे। उन्होंने नागार्जुन, निर्मल वर्मा, महाश्वेता देवी, उ.र. अनन्तमूर्ति, गुरदयाल सिंह, कुर्रतुल-ऐन-हैदर जैसे कृति साहित्यकारों पर वृत्तचित्रों के लिए पटकथा-लेखन किया।

प्राय: सभी भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मनी, डच, फ़्रांसीसी, स्पानी, इतालवी, जापानी, पोल्स्की और बल्गारी आदि विदेशी भाषाओं के कई संकलनों और पत्र-पत्रिकाओं में मंगलेश डबराल की कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हैं। कुछ अंग्रेज़ी अनुवाद डेनियल वाइसबोर्ट और अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा द्वारा सम्पादित ‘पेरिप्लस’, वाइसबोर्ट और गिरधर राठी द्वारा सम्पादित ‘पोयट्री ऑफ़ सर्वाइवल’, के. सच्चिदानन्द द्वारा सम्पादित ‘जेस्चर्स, एक सौ भारतीय कवियों के संकलन ‘सिग्नेचर्स’ और यूनिस डिसूज़ा द्वारा सम्पादित ‘दीज़ माई वड्र्स’ आदि में संकलित हैं। मरिओला ओफ़्रेदी द्वारा उनके कविता-संग्रह—‘आवाज़ भी एक जगह है’ का इतालवी अनुवाद, ‘अंके ला वोचे ऐ उन लुओगो’ और अंग्रेज़ी अनुवादों का एक चयन ‘दिस नम्बर इज़ नॉट एक्ज़िस्ट’ नाम से प्रकाशित हो चुका है।

मंगलेश डबराल ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘ओम् प्रकाश स्मृति सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘पहल सम्मान’, हिन्दी अकादमी (दिल्ली) का ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘कुमार विकल स्मृति सम्मान’, ‘गजानन माधव मुक्तिबोध राष्ट्रीय साहित्य सम्मान’, ‘परिवार पुरस्कार’ आदि से सम्मानित किए गए। उन्होंने आयोवा विश्वविद्यालय के अन्तरराष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम, जर्मनी के लाइपज़िग पुस्तक मेले, रोतरदम के अन्तरराष्ट्रीय कविता उत्सव (2008) और नेपाल, मॉरिशस और मॉस्को की यात्राओं के दौरान कई जगह कविता पाठ किए। मंगलेश जी आजीविका के लिए ताउम्र पत्रकारिता से सम्बद्ध रहे।

निधन : 9 दिसम्बर, 2020

ई-मेल: mangalesh.dabral@gmail.com

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