Chautha Khambha (Private) Limited-Hard Cover

Author: Dilip Mandal
Special Price ₹382.50 Regular Price ₹450.00
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ISBN:9788126728206
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9788126728206
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जनविरोधी होना मीडिया का षड्यंत्र नहीं, बल्कि उसकी संरचनात्मक मजबूरी है। एक समय था जब मास मीडिया पर यह आरोप लगता था कि वह कॉरपोरेट हित में काम करता है। 21वीं सदी में मीडिया ख़ुद कॉरपोरेट है और अपने हित में काम करता करता है। कॉरपोरेट मीडिया यानी अख़बार, पत्रिकाएँ, चैनल और अब बड़े वेबसाइट भी प्रकारान्तर में पूँजी की विचारधारा, दक्षिणपन्थ, साम्प्रदायिकता, जातिवाद और तमाम जनविरोधी नीतियों के पक्ष में वैचारिक गोलबन्दी करने की कोशिश करते नज़र आते हैं। पश्चिमी देशों के मीडिया तंत्र को समझने के लिए नोम चोम्स्की और एडवर्ड एस. हरमन ने एक प्रोपेगंडा मॉडल दिया था। इसके मुताबिक़, मीडिया को परखने के लिए उसके मालिकाना स्वरूप, उसके कमाई के तरीक़े और ख़बरों के उसके स्रोत का अध्ययन किया जाना चाहिए। इस मॉडल के आधार पर चोम्स्की और हरमन इस नतीजे पर पहुँचे कि अमेरिकी और यूरोपीय मीडिया का पूँजीपतियों के पक्ष में खड़ा होना और दुनिया-भर के तमाम हिस्सों में साम्राज्यवादी हमलों का समर्थन करना किसी षड्यंत्र के तहत नहीं है। मीडिया अपनी आन्तरिक संरचना के कारण यही कर सकता है। साम्राज्यवाद को टिकाए रखने में मीडिया कॉरपोरेशंस का अपना हित है। उसी तरह, पूँजीवादी विचार को मज़बूत बनाए रखने में मीडिया का अपना स्वार्थ है।

भारत के सन्दर्भ में चोम्स्की और हरमन के प्रोपेगंडा मॉडल में एक तत्त्व और जुड़ता है। वह है भारत की सामाजिक संरचना। इस नए आयाम की वजह से भारतीय मुख्यधारा का मीडिया पूँजीवादी के साथ-साथ जातिवादी भी बन जाता है। उच्च और मध्यवर्ग में, ऊपर की जातियों की दख़ल ज़्यादा होने के कारण मीडिया के लिए आर्थिक रूप से भी ज़रूरी है कि वह उन जातियों के हितों की रक्षा करे। आख़िर इन्हीं वर्गों से ऐसे लोग ज़्यादा आते हैं, जो महत्त्वपूर्ण ख़रीदार हैं और इनकी वजह से विज्ञापनदाताओं को मीडिया में इनकी उपस्थिति चाहिए। यह एक ऐसा दुश्चक्र है, जिसकी वजह से भारतीय मीडिया न सिर्फ़ गरीबों, किसानों, ग्रामीणों और मज़दूरों बल्कि पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अल्पसंख्यकों की भी अनदेखी करता है। मीडिया के इस स्वरूप के पीछे किसी की बदमाशी या किसी का षड्यंत्र नहीं है। यह मीडिया और समाज की संरचनात्मक बनावट और इन दोनों के अन्तर्सम्बन्धों का परिणाम है। प्रस्तुत किताब इन्हीं अन्तर्सम्बन्धों को समझने की कोशिश है। इसे जानना मीडिया के विद्यार्थियों के साथ ही तमाम भारतीय नागरिकों के लिए आवश्यक है, क्योंकि जाने-अनजाने हम सब मीडिया से प्रभावित हो रहे हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2016
Edition Year 2016, Ed. 1st
Pages 152p
Price ₹450.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Dilip Mandal

Author: Dilip Mandal

दिलीप मंडल

दिलीप मंडल पेशेवर संचारकर्मी हैं। देश के दस से अधिक प्रमुख मीडिया घरानों से लगभग दो दशक तक जुड़े रहे दिलीप मंडल वैकल्पिक मीडिया में लगातार प्रयोग कर रहे हैं। वे कॉलेज के दिनों में ही छात्र और मज़दूर आन्दोलनों से जुड़े और झारखंड अलग राज्य आन्दोलन में भी शरीक रहे। पत्रकारिता का विधिवत् प्रशिक्षण टाइम्स सेंटर फ़ॉर मीडिया स्टडीज से हासिल किया। ‘दैनिक जागरण’ के दिल्ली संस्करण के साथ सांस्थानिक पत्रकारिता की शुरुआत। इसके बाद ‘जनसत्ता’ के कोलकाता संस्करण, ‘इंडिया टुडे’, दैनिक ‘अमर उजाला’ और ‘इंटर प्रेस सर्विस’ से जुड़कर प्रिंट की पत्रकारिता की। सम्पादन से लेकर चुनाव और संसदीय रिपोर्टिंग तथा प्रिंट माध्यम में लगभग 10 साल का सफ़र।

टीवी न्यूज़ चैनल ‘आज तक’, ‘ज़ी न्यूज़’ और ‘स्टार न्यूज़’ में एसोशिएट प्रोड्यूसर, असिस्टेंट एडिटर तथा सीनियर प्रोड्यूसर जैसे पदों पर रहे। देश के प्रमुख बिजनेस चैनल ‘सीएनबीसी आवाज़’ में एक्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर एवं टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह के बिजनेस पोर्टल ‘इकनॉमिक टाइम्स डॉट कॉम’ में सम्पादक रहने के दौरान कॉरपोरेट दुनिया और मीडिया कारोबार को क़रीब से देखने का अनुभव।

अपेक्षाकृत महत्त्वपूर्ण काम सांस्थानिक पत्रकारिता से बाहर रहा। मीडिया घरानों में काम करने के दौरान और उसके बाद भी विकास, विस्थापन, जनस्वास्थ्य, शिक्षा नीति और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर देश के प्रमुख समाचार-पत्रों में निरन्तर लेखन। प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में सैकड़ों सम्पादकीय आलेख प्रकाशित। अनेक पुस्तकों के लिए अध्याय लिखे। प्रमुख कृतियाँ हैं : ‘मीडिया का अंडरवर्ल्‍ड’, ‘चौथा खम्‍भा प्राइवेट लिमिटेड’, ‘जातिवार जनगणना : संसद, समाज और मीडिया’ आदि। एक अन्य पुस्तक ‘जातिवार जनगणना की चुनौतियाँ’ के सह-सम्पादक।

पत्रकारिता प्रशिक्षण से भी जुड़े रहे। ‘डायवर्सिटी मैन ऑफ़ द ईयर पुरस्‍कार’—2010 से सम्मानित।

पत्रकार, लेखक और मॉस कम्युनिकेशन के शिक्षक दिलीप मंडल लगभग ढाई दशक के अपने पेशेवर सफर में ‘जनसत्ता’, ‘अमर उजाला’, ‘इंडिया टुडे’, ‘आज तक’, ‘स्टार न्यूज’, ‘इकॉनोमिक टाइम्स’, ‘सीएनबीसी आवाज’ और ‘द प्रिंट’ समेत कई पत्र-पत्रिकाओं और न्यूज़ चैनलों से जुड़े रहे। ‘इंडिया टुडे’ के प्रबंध सम्पादक भी रहे। भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल में अध्यापन का कार्य भी किया। माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में एडजंक्ट प्रोफेसर थे। ‘दिलीप मंडल की पाठशाला’ इनका चर्चित वीडियो कॉलम है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के इंडिया कॉन्फ्रेंस, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उत्कृष्ट पत्रकारिता और मीडिया लेखन के लिए भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय तथा प्रेस कौंसिल से सम्मानित किए जा चुके हैं।

ईमेल : dilipcmandal@gmail.com

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