V. N. Voloshinov
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वी.एन. वालोशिनोव
जन्म : 30 जून, 1895; रूस।
रूसी भाषाविज्ञानी वोलोशिनोव प्रसिद्ध बख़्तीन सर्किल के एक सदस्य थे जिसके सैद्धान्तिक नेता मिखाइल मिखाइलोविच बख़्तीन माने जाते रहे हैं। कागान, मद्वेदेव, वी.एन. वालोशिनोव, पम्पियांस्की व सोलेरतिंस्की सर्किल के अन्य सदस्य थे। बख़्तीन सर्किल का विचार-जगत एकाश्मी और सुबद्ध नहीं था। वैज्ञानिक संज्ञान और प्रतीकात्मक रूपों के बारे में कास्सिरेर के विचारों के गहन प्रभाव के बावजूद वोलोशिनोव और मद्वेदेव के लेखन की सर्किल के अन्य पुरोधाओं से कुछ महत्त्वपूर्ण भिन्नताएँ हैं जो उन्हें मार्क्सवादी विचारों के दायरे में ज़्यादा विश्वासपूर्वक रखने का आधार देती हैं। उनके लेखन का मार्क्सवादी चरित्र अधिक मुखर था।
वोलोशिनोव के लेखन की शुरुआत 1918 के आसपास वितेब्स्क में हुई, जहाँ बख़्तीन ग्रुप के लोग गृहयुद्ध की कठिनाइयों से बचने के लिए रह रहे थे। उसी समय वहाँ मालेविच और शागाल जैसे अवाँगार्द कलाकार भी रह रहे थे। वहाँ बख़्तीन सर्किल के सदस्यगण सिर्फ़ अकादमिक दार्शनिक गतिविधियों तक सीमित न रहकर उस दौर की रैडिकल सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी भी करते थे। पावेल मद्वेदेव वितेब्स्क सर्वहारा विश्वविद्यालय के रेक्टर पद पर नियुक्त हो गए थे और नगर की सांस्कृतिक पत्रिका ‘इस्कुस्त्वो’ (कला) का सम्पादन भी करते थे। 1924 में लेनिनग्राद आने के बाद का समय बख़्तीन सर्किल के सदस्यों की महत्त्वपूर्ण कृतियों का रचनाकाल था। यह सिलसिला 1928 में सर्किल के बिखरने तक चलता रहा जब ‘सेंट पीटर्सबर्ग धार्मिक-दार्शनिक समाज’ नामक संगठन से सम्बन्ध के कारण बख़्तीन को दस वर्ष के लिए सोलोवेत्स्की द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया। बाद में गोर्की और लूनाचार्स्की के हस्तक्षेप के कारण सजा घटाकर उन्हें छह वर्ष के लिए कजाकिस्तान भेज दिया गया। वोलोशिनोव 1934 तक लेनिनग्राद में ‘हर्जेन शिक्षाशास्त्रीय संस्थान’ में काम करते रहे। 1934 में ही उन्हें तपेदिक हुआ और दो वर्ष बाद एक सेनेटोरियम में उनका देहान्त हो गया।
निधन : 13 जून, 1936