Ramkumar Verma
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रामकुमार वर्मा
जन्म : मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में 15 सितम्बर, सन् 1905 में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा उनकी माता श्रीमती राजरानी देवी ने अपने घर पर ही दी, जो उस समय की हिन्दी कवयित्रियों में विशेष स्थान रखती थीं। 1922 ई. में प्रबल वेग से असहयोग की आँधी उठी और डॉ. वर्मा राष्ट्रसेवा में हाथ बँटाने लगे तथा एक राष्ट्रीय कार्यकर्ता के रूप में जनता के सम्मुख आए। वे प्रयाग विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय में एम.ए. में सर्वप्रथम रहे। उन्हें नागपुर विश्वविद्यालय की ओर से 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' पर डॉक्ट्ररेट दी गई। वर्षों तक वे प्रयाग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक तथा फिर अध्यक्ष रहे।
'वीर हमीर', 'चित्तौड़ की चिता', 'साहित्य समालोचना', 'अंजलि', 'कबीर का रहस्यवाद', 'अभिशाप', 'हिन्दी गीतिकाव्य', 'निशीथ', 'हिमहास', 'चित्ररेखा', 'पृथ्वीराज की आँखें', 'कबीर पदावली', 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास', 'जौहर', ‘रेशमी टाई', 'शिवाजी', 'चार ऐतिहासिक एकांकी', 'रूपरंग', ‘कौमुदी महोत्सव' रामकुमार वर्मा की प्रमुख रचनाएँ हैं।
डॉ. वर्मा का कवि-व्यक्ति छायावाद में मूल्यवान उपलब्धि सिद्ध हुआ। हिन्दी रहस्यवाद के क्षेत्र में भी उनकी विशेष देन है। नाटककार रामकुमार वर्मा का व्यक्तित्व आज भी कवि-व्यक्तित्व से अधिक शक्तिशाली और लोकप्रिय है। नाटककार धरातल से उनका 'एकांकीकार' स्वरूप ही उनकी विशेष महत्ता है और इस दिशा में वे आधुनिक हिन्दी एकांकी के 'जनक' कहे जाते हैं, जो निर्विवाद सत्य है।
आलोचना के क्षेत्र में डॉ. वर्मा की कबीर विषयक खोज और उनके पदों का प्रथम शुद्ध पाठ तथा कबीर की रहस्यवाद और योगसाधना की पद्धति की समालोचना विशेष उपलब्धि है। हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन में उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' (1938 ई.) का विशेष महत्त्व है।
निधन : 5 अक्टूबर, 1990