Prem Bhargav
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प्रेम भार्गव
उत्तर प्रदेश के चन्दौसी ज़िले के एक मध्यवर्गीय परिवार में 2 जुलाई, 1936 को जन्मी डॉ. प्रेम भार्गव के पिता श्री कान्तिचन्द्र भार्गव विद्युत विभाग में अभियन्ता थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा माँ की देखरेख में हुई। माँ श्रीमती कमला बहुत पढ़ी-लिखी नहीं थीं, पर बड़ी विवेकशील और सरल स्वभाव की महिला थीं। अत: अच्छे संस्कारों के साथ विद्याध्ययन के प्रति रुचि, सत्साहित्य के प्रति प्रेम का बीज भी उन्होंने अपने बच्चों में बोया। यही कारण है कि स्कूल और शिक्षक के अभाव में अपनी लगन के बल पर डॉ. प्रेम ने घर पर ही अध्ययन करके प्रवेशिका, विद्याविनोदिनी, विदुषी और इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर बी.ए. ऑनर्स (हिन्दी) दिल्ली विश्वविद्यालय से किया।
विवाहोपरान्त पति एवं परिजन ने उन्हें आगे अध्ययन जारी रखने में प्रोत्साहित किया और वे एम.ए. (हिन्दी) परीक्षा पूर्ण कर मुम्बई आ गईं। इसके बाद उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र पंकज का पालन-पोषण करते हुए भी अपने पतिदेव की सत्प्रेरणा से हिन्दी साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर ली।
विश्वविद्यालयी जीवन में डॉ. प्रेम ने अनेक निबन्ध-प्रतियोगिताओं में पुरस्कार जीते, पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख निरन्तर छपते रहे हैं, भाषा एवं साहित्य सम्बन्धी उनके कुछ लेख संग्रहणीय हैं। उनकी कई बाल कथाएँ चर्चित रही हैं। उनकी महत्त्वपूर्ण पुस्तक ‘परमाणु की आत्मकथा’ को रक्षा मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा द्वितीय पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।
डॉ. भार्गव राष्ट्रीय अन्ध संस्था, मुम्बई के द्वारा दृष्टिहीनों के लिए हिन्दी ब्रेल लिपि में प्रकाशित विज्ञान पत्रिका ‘भारती’ की मानद सम्पादक रही हैं।