Bhadant Anand Kaushalyayan
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भदन्त आनन्द कौसल्यायन
जन्म : 5 जनवरी, 1905; मोहाली पंजाब।
बौद्ध भिक्षु, पालि भाषा के मूर्धन्य विद्वान तथा लेखक। पूरे जीवन घूम-घूमकर समतामूलक समाज का प्रचार-प्रसार करते रहे। बीसवीं शती में बौद्धधर्म के सर्वश्रेष्ठ क्रियाशील व्यक्तियों में गिने जाते हैं। कई राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रधानमंत्री रहे।
भारत के स्वतंत्रता में भी श्री भदन्त ने सक्रिय रूप से भाग लिया। वे भीमराव अम्बेडकर और महापंडित राहुल सांकृत्यायन से भी प्रभावित थे। उन्होंने भिक्षु जगदीश कश्यप, भिक्षु धर्मरक्षित आदि के साथ मिलकर त्रिपिटक का हिन्दी में अनुवाद किया। श्रीलंका जाकर बौद्ध भिक्षु हुए। वे श्रीलंका की विद्यालंकार विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यक्ष भी रहे।
प्रमुख कृतियाँ : ‘अगर बाबा न होते’, ‘भिक्खु के पत्र’, ‘वेद से मार्क्स तक’, ‘राम की कहानी, राम की ज़ुबानी’, ‘मनुस्मृति क्यों जलाई’, ‘बौद्धधर्म एक बुद्धिवादी अध्ययन’, ‘बौद्ध जीवन-पद्धति’, ‘जो भुला न सका’, ‘भगवान बुद्ध और अनुचर’, ‘भगवान बुद्ध और उनके समकालीन भिक्षु’ आदि।
अनुवाद : ‘जातक अट् ठकथा’, का 6 खंडों में पालि भाषा से हिन्दी में अनुवाद। ‘धम्मपद’, के हिन्दी अनुवाद के अलावा पालि भाषा की कई किताबों का हिन्दी में अनुवाद। अम्बेडकर के ‘दि बुद्धा एंड हिज़ धम्मा’ ग्रन्थ का हिन्दी एवं पंजाबी में अनुवाद।
निधन : 22 जून, 1988