Sophie Ka Sansar : Pashchatya Jagat Ki Darshan-Gatha
Jostein Gaarder (Author), Satya P. Gautam (Ed. & Tr.)
'सोफी का संसार’ एक रहस्यपूर्ण और रोचक उपन्यास है, साथ ही पश्चिमी दर्शन के इतिहास और दर्शन की मूलभूत समस्याओं के विश्लेषण पर एक गहन तथा अद्वितीय पुस्तक भी। आधुनिक भारत के प्रसिद्ध दार्शनिक प्रोफ़ेसर दयाकृष्ण के अनुसार दो प्रश्नों को सार्वभौमिक स्तर पर दर्शन के मूलभूत प्रश्न कहा जा सकता है। पहला प्रश्न है : 'मैं कौन हूँ?' और, दूसरा है : 'यह विश्व अस्तित्व में कैसे आया?' अन्य दार्शनिक प्रश्न इन्हीं दो मूल प्रश्नों के साथ जुड़े हुए हैं। इन प्रश्नों से पाठक का परिचय उपन्यास के पहले ही अध्याय में एक रहस्यात्मक और रोचक प्रसंग के माध्यम से हो जाता है। किसी जटिल सैद्धान्तिक रूप में प्रस्तुत करने के बजाय 14-15 वर्ष की किशोरी सोफी को दैनिक जीवन के व्यावहारिक स्तर पर इन प्रश्नों को पूछने के लिए प्रेरित किया गया है।
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'रेमाधव' से प्रकाशित महान साहित्यकार सत्यजित राय की पुस्तकें नई साज सज्जा में...
महान फिल्मकार और बांग्ला लेखक सत्यजित राय के संपूर्ण साहित्य को हिन्दी में प्रकाशित करना रेमाधव के संकल्प का विशेष भाग है। हिन्दी के कम ही पाठक इस बात से वाकिफ होंगे कि एक बड़े फिल्मकार के रूप में दुनियाभर में मशहूर सत्यजित राय अपनी रहस्य और रोमांच से भरी कहानियों, अपने जासूसी उपन्यासों और विज्ञान कथाओं के कारण बांग्ला में बाल और किशोर पाठकों के बीच ही नहीं बल्कि हर उम्र के पाठकों के बीच असाधारण रूप से लोकप्रिय रहे हैं। उनके द्वारा रचित जासूस फेलूदा और वैज्ञानिक प्रोफेसर शंकू दशकों से बांग्ला पाठकों के पसंदीदा बने हुए हैं और अनुवादों के जरिये आज दुनिया भर में लोकप्रिय हो चुके हैं। हिन्दी पाठकों को उनका समूचा साहित्य पहुंचाना रेमाधव की प्राथमिकता में है।
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‘रेमाधव’ से प्रकाशित मन्नू भंडारी, चित्रा मुद्गल व मैत्रेयी पुष्पा की पुस्तकें नई साज सज्जा में...
नयी साज सज्जा में आ रही हैं रेमाधव प्रकाशन की पुस्तकें . हिन्दी में लिखे जा रहे उल्लेखनीय साहित्य के साथ-साथ अन्य सभी भारतीय भाषाओं की श्रेष्ठ कृतियों के अनुवाद व हिन्दी में बच्चों और किशोरों के लिए अच्छे साहित्य के प्रकाशन के लिए ख्यातिलब्ध प्रकाशन रेमाधव की पुस्तकें नयी साज सज्जा में जल्द ही उपलब्ध होने वाली हैं…
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‘रेमाधव’ से प्रकाशित चित्रा मुद्गल, मधु काँकरिया, मृदुला गर्ग और चन्द्रकान्ता के कहानी संग्रह...
नयी साज सज्जा में आ रही हैं रेमाधव प्रकाशन की पुस्तकें . हिन्दी में लिखे जा रहे उल्लेखनीय साहित्य के साथ-साथ अन्य सभी भारतीय भाषाओं की श्रेष्ठ कृतियों के अनुवाद व हिन्दी में बच्चों और किशोरों के लिए अच्छे साहित्य के प्रकाशन के लिए ख्यातिलब्ध प्रकाशन रेमाधव की पुस्तकें नयी साज सज्जा में जल्द ही उपलब्ध होने वाली हैं…
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'रेमाधव' से प्रकाशित महान साहित्यकार सत्यजित राय की पुस्तकें नई साज सज्जा में
महान फिल्मकार और बांग्ला लेखक सत्यजित राय के संपूर्ण साहित्य को हिन्दी में प्रकाशित करना रेमाधव के संकल्प का विशेष भाग है। हिन्दी के कम ही पाठक इस बात से वाकिफ होंगे कि एक बड़े फिल्मकार के रूप में दुनियाभर में मशहूर सत्यजित राय अपनी रहस्य और रोमांच से भरी कहानियों, अपने जासूसी उपन्यासों और विज्ञान कथाओं के कारण बांग्ला में बाल और किशोर पाठकों के बीच ही नहीं बल्कि हर उम्र के पाठकों के बीच असाधारण रूप से लोकप्रिय रहे हैं। उनके द्वारा रचित जासूस फेलूदा और वैज्ञानिक प्रोफेसर शंकू दशकों से बांग्ला पाठकों के पसंदीदा बने हुए हैं और अनुवादों के जरिये आज दुनिया भर में लोकप्रिय हो चुके हैं। हिन्दी पाठकों को उनका समूचा साहित्य पहुंचाना रेमाधव की प्राथमिकता में है।
Boond Boond Ghazal
Vinod Prakash Gupta 'Shalabh' (Author)
डॉ. विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ' की ग़ज़लें इन अर्थों में विशिष्ट हैं कि इनका शाइर विस्तृत जीवन-अनुभव के साथ-साथ सूक्ष्म निरीक्षण और विश्लेषणात्मक विवेक से परिपूर्ण है। जहाँ एक तरफ़ वह विविधता के विराटत्व से विचलित न होकर उसमें निर्भीकतापूर्वक वास करते हुए उसी के सार से अपने सृजन को रूप-रंग देने की कला से परिचित है तो दूसरी तरफ़ वह सूक्ष्म से सूक्ष्म तथ्य की परख और उसके सम्पूर्ण सत्य के विभिन्न आयामों को भी उजागर करने में सक्षम है। ‘बूँद-बूँद ग़ज़ल’ के शाइर की मान्यताएँ, मंतव्य और सपने भी ठोस धरातल पर खड़े प्रतीत होते हैं, जहाँ संशय के लिए कोई स्थान नहीं है। वह पूरी पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ अपनी जीवन-दृष्टि का खुलासा करता है, पूरी शक्ति से अपने पक्ष का समर्थन करता है और विपक्ष को ललकारता है। इसी से शाइर का आत्मविश्वास पाठक का आत्मविश्वास बन जाता है। ‘शलभ’ जी के पहले ग़ज़ल-संग्रह ‘आओ नई सहर का नया शम्स रोक लें’ की तरह ही यह संग्रह भी अपने उल्लेखनीय और विशिष्ट योगदान के लिए प्रस्तुत है। —विजय कुमार स्वर्णकार
‘Kaun Hain Bharat Mata?’
Purushottam Agarwal (Editor), Pooja Shrivastava (Translator)
यह भारतमाता कौन है, जिसकी जय आप देखना चाहते हैं’? 1936 की एक सार्वजनिक सभा में जवाहरलाल नेहरू ने लोगों से यह सवाल पूछा। वही जवाहरलाल जो भारत के स्वाधीनता-आन्दोलन के सबसे महत्त्वपूर्ण नायकों में रहे और बाद में देश के पहले प्रधानमंत्री भी बने। फिर उन्होंने कहा : बेशक ये पहाड़ और नदियाँ, जंगल और मैदान सबको बहुत प्यारे हैं, लेकिन जो बात जानना सबसे ज़रूरी है वह यह कि इस विशाल भूमि में फैले भारतवासी सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं। भारतमाता यही करोड़ों-करोड़ जनता है और भारतमाता की जय उसकी भूमि पर रहने वाले इन सब की जय है।’ यह किताब इस सच्ची लोकतांत्रिक भावना और समावेशी दृष्टिकोण को धारण करने वाले शानदार दिमाग़ को हमारे सामने रखती है। यह पुस्तक आज के समय में ख़ासतौर से प्रासंगिक है जब ‘राष्ट्रवाद’ और ‘भारतमाता की जय’ के नारे का इस्तेमाल भारत के विचार को एक आक्रामक चोगा पहनाने के लिए किया जा रहा है जिसमें यहाँ रहनेवाले करोड़ों निवासियों और नागरिकों को छोड़ दिया गया है।
Hindi Kahani Vaya Alochana
Neeraj Khare (Author)
बीसवीं शताब्दी की समय-गाथा हिन्दी कहानी की गौरवमयी विरासत और विस्मयकारी विस्तार में मौजूद है। उसके विभिन्न मुकाम, उपलब्धियों और कहानीकारों के मूल्यांकन पर अनेक पुस्तकें हैं। लोकप्रिय विधा कहानी की आलोचना परम्परा भी विकसित हुई। ऐसे प्रयासों से कहानी आलोचना का नया सौंदर्यशास्त्र निर्मित हुआ। प्रायः उनमें कथा प्रवृत्तियों, कहानियों के उल्लेख और कहानीकारों पर सघन विवेचन तो हैं, पर कहानियों के एकल पाठ यानी उन पर एकाग्र आलोचनाएँ कम ही हैं। नीरज खरे द्वारा सम्पादित ‘हिन्दी कहानी वाया आलोचना’ कहानी आलोचना की ऐसी पहली किताब है, जिसमें बीसवीं सदी की सत्तर प्रतिनिधि कहानियों पर अलग-अलग आलोचनाएँ एक साथ हैं। हिन्दी कहानी के आरम्भिक काल, विभिन्न पड़ाव, नई कहानी, साठोत्तरी आन्दोलन और उत्तर सदी में मुक्त प्रवाह के मुताबिक़ किताब के तीन खंड हैं—‘बढ़ते क़दमों के निशान’, ‘कहानी : नई होने की डगर’ तथा ‘कहानी : साठोत्तरी और उत्तर सदी’। इन खंडों में क्रमशः रखी गई आलोचनाएँ पैंतालीस लेखकों की विचार-दृष्टि और लेखन दक्षता का प्रतिफल हैं—जिनमें कहानियों के नए मूल्यांकन और आलोचना-पद्धतियों के बदलाव भी परिलक्षित हैं।
Log Jo Mujhmein Rah Gaye
Anuradha Beniwal
एक लड़की जो अलग-अलग देशों में जाती है और अलग-अलग जींस और जज़्बात के लोगों से मिलती है। कहीं गे, कहीं लेस्बियन, कहीं सिंगल, कहीं तलाक़शुदा, कहीं भरे-पूरे परिवार, कहीं भारत से भी ‘बन्द समाज’ के लोग। कहीं जनसंहार का—रोंगटे खड़े करने और सबक देने वाला—स्मारक भी वह देखती है जिसमें क्रूरता और यातना की छायाओं के पीछे ओझल बेशुमार चेहरे झलकते हैं। उनसे मुख़ातिब होते हुए उसे लगता है, सब अलग हैं लेकिन सब ख़ास हैं। दुनिया इन सबके होने से ही सुन्दर है। क्योंकि सबकी अपनी अलहदा कहानी है। इनमें से किसी के भी नहीं होने से दुनिया से कुछ चला जाएगा। अलग-अलग तरह के लोगों से कटकर रहना हमें बेहतर या श्रेष्ठ मनुष्य नहीं बनाता। उनसे जुड़ना, उनको जोड़ना ही हमें बेहतर मनुष्य बनाता है; हमारी आत्मा के पवित्र और श्रेष्ठ के पास हमें ले जाता है। ऐसे में उस लड़की को लगता है—मेरे भीतर अब सिर्फ़ मैं नहीं हूँ, लोग हैं। लोग—जो मुझमें रह गए!
Aaj Ka Hind Swaraj
Sandeep Joshi (Author)
महात्मा गाँधी को सिरे से ख़ारिज करने या उनका अवमूल्यन करने की मुहिम, इन दिनों, सुनियोजित ढंग से चलायी जा रही है। हमारा समय, कम से कम इस समय सत्तारूढ़ शक्तियों के किये-लेखे, गाँधी के अस्वीकार का, गाँधी-विरोध का समय है। यह विरोध या अस्वीकार गाँधी को एक नयी और तीक्ष्ण प्रासंगिकता देता है। उस प्रासंगिकता का ही हिस्सा है प्रश्नवाचकता जबकि प्रश्न पूछना लगभग गुनाह क़रार दिया जा रहा है। गाँधी ने अपने समय में निर्भयता से प्रश्न उठाये और उनके समुचित उत्तर देने की कोशिश की। युवा चिन्तक और कर्मशील संदीप जोशी हमारे समय के कुछ ज़रूरी प्रश्न और उसके बेचैन उत्तर खोजने की 'गुस्ताख़ी' कर रहे हैं। यह गाँधी की दृष्टि का हमारे कठिन समय के लिए पुनराविष्कार है। —अशोक वाजपेयी