Gramin Vikash Ka Adhar : Aatmanirbhar Panchayanten-Hard Cover

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ISBN:9788183610513
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संविधान में 73वें संशोधन के बाद यह उम्मीद की गई कि देश के लाखों गाँवों में पंचायती राज की स्थापना से गाँवों के कष्ट दूर होंगे। विकास की बहुत उम्मीदें भी लगाई गईं, आरक्षण से गाँवों के पिछड़ों, महिलाओं के लिए स्थान भी सुरक्षित किए गए, पर हुआ क्या? क्या बिना साधनों के विकास सम्भव होगा? पंचायतों को अधिकार एवं ज़िम्मेदारियाँ तो सौंप दी गईं, परन्तु आवश्यक वित्त प्रबन्ध नहीं हुआ। यदि हुआ भी तो इतना कमज़ोर कि उससे दैनिक ख़र्चा भी नहीं निकल सकता है। ऐसे में पंचायतों के पास क्या विकल्प है? किन साधनों का कैसे विकास हो? इन्हीं सब मुद्दों पर इस पुस्तक में विचार किया गया है। इसमें यह बात प्रमुखता से उभरकर आती है कि आत्मनिर्भरता से ही विकास करना व ग़रीबी हटाना सम्भव होगा।

पुस्तक में पंचायत की सफलता की कहानियाँ, कार्टून, चित्र, सारणियाँ एवं आरेखों के द्वारा विषय को रोचक बनाने का प्रयास किया गया है, ताकि ग्रामीण पृष्ठभूमि के कम पढ़े-लिखे पाठक भी इसे आसानी से पढ़ सकें और आत्मसात् कर सकें।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2006
Edition Year 2021, Ed 2nd
Pages 231p
Price ₹895.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Pratapmal Devpura

Author: Pratapmal Devpura

प्रतापमल देवपुरा

शिक्षा : एम.ए., एम.एससी., एम.एड.।

राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण संस्थान, उदयपुर से प्रायोजना अधिकारी पद से मार्च, 1999 में सेवानिवृत्त।

लेखन : जनसंख्या, किशोरावस्था, पर्यावरण विकास, पंचायतीराज, शिक्षा, विज्ञान आदि विषयक 60 लेख एवं 12 पुस्तकें प्रकाशित।

सम्मान : हिन्दी में मौलिक पुस्तक ‘जनसंख्या शिक्षा’ के लिए वर्ष 1995-96 में भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा पुरस्कृत। भारतीय विज्ञान लेखक संघ द्वारा तीसरी विज्ञान संचार कांग्रेस, 2003 में विज्ञान के लोकव्यापीकरण एवं संचार के लिए चिरस्थायी प्रयत्न हेतु सम्मानित।

सम्प्रति : ग़ैर-सरकारी संस्था विद्याभवन सोसायटी, उदयपुर में पंचायतीराज जनप्रतिनिधियों के प्रशिक्षण एवं सामग्री-निर्माण के कार्य में संलग्न।

 

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