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Upendra

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उपेन्द्र

जन्म : 1934; कानपुर।

शिक्षा : एम.ए. (अंग्रेज़ी, हिन्दी), डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर से; पीएच.डी., सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) से; विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक रहे; जून 1994 में अवकाश ग्रहण किया।

पढ़ने-पढ़ाने और लिखने के संस्कार अपने पिता (स्व.) ब्रजभूषण लाल त्रिपाठी ‘निश्चल’ से मिले जो स्वयं एक कुशल अध्यापक और कवि थे। मात्र पन्द्रह वर्ष की उम्र में कविता की सतरें जोड़ना सीख लिया था। अठारहवें वर्ष यानी सन् 1952 से तो उनकी रचनाएँ नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं में दिखाई देने लगीं। सन् ’59 में प्रथम कृति ‘घटा साँवरी’ के प्रकाशन के बाद एक प्रतिभाशाली गीतकार के रूप में उनकी पहचान बनी, जब बड़ों का ध्यान भी उन्होंने अपनी तरफ़ खींचा। हजारीप्रसाद द्विवेदी ने उनमें ‘परम्परा को आत्मसात् करके उसे नया रूप देने की शक्ति’ देखी तो हरिवंशराय ‘बच्चन’ को उनके ‘हृदय में राग तत्त्व का स्रोत’ छलकता हुआ दिखाई दिया। निस्सन्देह कविता और गद्य, दोनों में ही उपेन्द्र की समान गति है।

प्रमुख कृतियाँ : ‘घटा साँवरी’, ‘बंशी और वन्‍दन’ (गीत-संग्रह); ‘छायावादी कवियों की गीत-सृष्टि’, ‘पंत का काव्य’, ‘निराला का काव्य’, ‘महाभारत : चरित-चर्चा’, ‘हिन्दी गीत और गीतकार’ (गद्य)।

सम्‍पादन : ‘आचार्य अयोध्यानाथ शर्मा अभिनन्दन-ग्रन्थ’, ‘भगवती प्रसाद गुप्त स्मृति मंजूषा’, ‘राष्ट्रीय कविताएँ’ (स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े हुए लगभग अस्सी कवियों की चुनी हुई रचनाओं का बृहत् संग्रह)।

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