Sir Valter Scot
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सर वाल्टर स्कॉट
वाल्टर स्कॉट का जन्म 1771 ई. में स्कॉटलैंड के एडिनबरा में हुआ था। वहीं विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे कुछ दिन अपने वकील पिता के सहायक रहे, फिर इक्कीस वर्ष की आयु में स्वतंत्र वकालत शुरू की। अवकाश के समय में उन्होंने स्कॉटलैंड के लोकगीत एकत्रित किए तथा गेटे आदि जर्मन कवियों के अनुवाद भी प्रकाशित कराए। कुछ ही समय बाद वे क्रमशः छापाख़ाने और प्रकाशन के व्यवसाय में साझीदार बन गए और ड्राइडेन, स्विफ़्ट आदि की रचनाओं के उन्होंने जीवनी-सहित सुसम्पादित संस्करण प्रकाशित किए।
वाल्टर स्कॉट की कविताएँ काफ़ी लोकप्रिय थीं। यहाँ तक कि 1813 ई. में उन्हें ग्रेट ब्रिटेन का राजकवि बनाने का भी प्रस्ताव हुआ पर उन्होंने स्वयं राबर्ट सदे को उस ओहदे के उपयुक्त बताकर ख़ुद राजकवि बनना अस्वीकार कर दिया। उस दौरान कवि के रूप में बायरन की बहुत ख्याति थी। उसके सामने अपनी ख्याति दबती देखकर वाल्टर स्कॉट ने 1814 ई. में ऐतिहासिक उपन्यास लिखने शुरू किए। प्रारम्भ में सारे उपन्यास अनाम छपे। 1820 ई. में उन्हें ‘सर’ की उपाधि मिली और 1827 ई. में उपन्यासों पर लेखक के रूप में उनका नाम छपना शुरू हुआ। उन्होंने अनेक नाटक भी लिखे पर इस क्षेत्र में उन्हें उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली। उनका अन्तिम उपन्यास उनकी मृत्यु के एक वर्ष पूर्व, 1831 ई. में प्रकाशित हुआ था।