Shiga Naoya
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शिगा नाओया
शिगा नाओया का जन्म 20 फरवरी, 1883 को मियागी प्रान्त के इशिनोमाकी शहर में हुआ।
सन् 1921 में इन्होंने ‘आनयाकोरो’ नाम से (डार्क नाइट पासिंग) आत्मकथात्मक उपन्यास लिखना शुरू किया जिसे 1937 में पूरा किया।
शिगा नाओया अपने लेखन-काल में ‘शिराकाबा’ नामक एक साहित्यिक पत्रिका से जुड़े थे। इनके अलावा इस पत्रिका से अन्य शामिल लेखकों में मुशानोकोजी सानेआत्सु एवं आरिशिमा ताकेओ थे। इस पत्रिका की नींव 1910 में पड़ी। इससे जुड़े सभी लोग कुलीन वर्ग से सम्बन्ध रखते थे। उनके जीवन और समाज के अनेक पहलुओं पर ग़ौर किया जाए तो ये लोग अन्य लेखकों से कहीं अधिक ख़ुशहाल, समृद्ध और खुले विचारों के थे। ये किसी ख़ास वैचारिक धारा को अपना आधार नहीं मानते थे, बल्कि समझते थे कि हरेक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व और योग्यता को जीवित रखने, उसे निखारने का मौक़ा मिलना चाहिए। इनमें अगर अधिकांश लेखक ताल्स्ताय की मानवतावाद से प्रभावित थे तो कुछ उचिमुराकान्जो (1861-1930) के ईसाई धर्म की विचारधारा से। नात्सुमेसोसेकी (1867-1916) से भी इन लोगों को काफ़ी कुछ सीखने को मिला। मानव के सुख-चैन की सच्ची कामना करनी हो तो हरेक इनसान को ज़िन्दगी एवं मानवता के मूल्यों पर ध्यान देना होगा, यही इन लेखकों का उद्देश्य था। वे नैतिक मूल्यों पर ज़ोर देते हुए नेकी और सदाचारी को ही सही मायने में सौन्दर्य का रूप मानते थे।
शिगा नाओया ‘शिराकाबा’ के लेखकों में सर्वश्रेष्ठ लेखक माने जाते थे। किसी भी वस्तु के प्रति अवलोकन की पैनी नज़र और अभिव्यक्ति की पुख़्तता इनकी ख़ासियत थी। इनकी रचनाओं में जहाँ मनोवैज्ञानिक वर्णन देखने को मिलता है, वहीं ये दृश्य और प्राकृतिक नज़ारों को भी बख़ूबी दर्शाते हैं; जैसे ‘नन्हे का भगवान’ में मनोवैज्ञानिक दृष्टि की बारीकी झलकती है और ‘ताकीबी’ (‘अलाव’, 1920) में दृश्य-वर्णन।