Naiyar Masood
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नैयर मसूद
16 नवम्बर, 1936 को लखनऊ में जन्मे नैयर मसूद को शुरुआती तालीम उनके पिता और उर्दू के प्रतिष्ठित विद्वान प्रोफ़ेसर मसूद हसन रिज़वी ‘अदीब' से मिली। प्रोफ़ेसर मसूद हसन रिज़वी को उर्दू में शोध और आलोचना के क्षेत्र में ऊँची जगह हासिल है, 1970 में उन्हें ‘पद्मश्री सम्मान’ से सम्मानित किया गया था। नैयर मसूद के चाचा अजहर मसूद विख्यात व्यंग्यकार रहे हैं।
नैयर मसूद ने 1957 में फ़ारसी साहित्य में एम.ए. और फिर फ़ारसी और उर्दू में पीएच.डी. किया। वे लखनऊ यूनिवर्सिटी के फ़ारसी विभाग में प्रोफ़ेसर रहे और वहीं से रिटायर हुए। नैयर मसूद के चार कहानी-संग्रह : ‘गंजीफ़ा’, ‘सीमिया’, ‘इतर काफूर’ और ‘ताऊस चमन की मैना’ प्रकाशित हो चुके हैं। ‘ताऊस चमन की मैना’ कहानी-संग्रह के लिए 2001 में उन्हें ‘उर्दू का साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ मिला और सन् 2007 में उन्हें ‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
विश्व विख्यात पत्रिका ‘एनुअल ऑफ़ उर्दू स्टडीज़’ का 1997 का पूरा अंक नैयर मसूद की रचनाओं पर केन्द्रित रहा है। उनकी कहानियों के अंग्रेज़ी तर्जुमों का संग्रह ‘द एसेंस ऑफ़ कैम्फर’ और ‘द स्नेक कैचर’ के नाम से प्रकाशित हुए हैं; इन कहानियों का अनुवाद अनिल मेनन ने किया है। नैयर मसूद के आलोचनात्मक लेखों के अनेक संग्रह प्रकाशित हैं। उन्होंने मशहूर मर्सिया निगार शायर मीर अनीस की जीवनी लिखी है। विशेष रूप से काफ़्का की रचनाओं सहित अन्य अनेक साहित्यकारों की रचनाओं का उर्दू में अनुवाद भी उन्होंने किया है।
24 जुलाई, 2017 को लखनऊ में ही उनका इन्तिकाल हुआ।