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Mrityunjay singh

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मृत्युंजय

मृत्युंजय भारतीय पुलिस सेवा में वरिष्ठ अधिकारी और काव्य-संवेदना से सम्पन्न रचनाकार हैं। इस कृति में उन्होंने यक्ष के ऊपर गुजरी वियोग की अनन्त पीड़ा को समकालीन दृष्टि से देखा है और कालिदास के मेघदूत में वर्णित उत्तर-भारत के भौगोलिक-सामाजिक जीवन का सुखद चित्रण चौथी-पाँचवीं सदी में लिखित मूल संस्कृत पाठ के माध्यम से किया है।
साहित्य, संगीत और इतिहास में गहरी रुचि रखनेवाले मृत्युंजय छह भाषाओं के ज्ञाता, जिनमें भोजपुरी, हिन्दी, अंग्रेजी, नेपाली, बांग्ला और भाषा-इंडोनेशिया शामिल है। मानव-जीवन के विविध अनुभवों से सम्पन्न मृत्युंजय को विदेशी कार्यकलाप के चलते अनेक संस्कृतियों को भी नजदीक से जानने का मौका मिला है। साहित्य और इतिहास का व्यापक अध्ययन भी आपने किया है। इन सबका ही नतीजा है कि आपने जीवन के त्रासद कोनों में भी माधुर्य को देखना सीखा और आधुनिकता तथा विकास के अन्तर्विरोधों की रोशनी में इतिहास और क्लासिक रचनाओं के प्रतीकों तथा छवियों का पुनरान्वेषण आरम्भ किया। प्रस्तुत कृति ऐसी पहली रचना है जिसका उद्देश्य आज के जीवन और जन-गण की भाषा में क्लासिक रचनाओं के महत्त्व को स्थापित तथा पुनर्जीवित करना है।
मृत्युंजय ने राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर की शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की और अखिल भारतीय सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर उच्चस्तरीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए। उन्हें अपनी सराहनीय सेवाओं के लिए ‘प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया मेडल’ तथा श्रेष्ठ क्षेत्रीय संगीत के लिए ‘कलाकार अवार्ड’ से सम्मानित किया जा चुका है। हाल ही में आपको भारत के राजदूत ने 2009-10 में इंडोनेशिया में आयोजित ‘भारत महोत्सव’ के लिए आपकी प्रशंसा की जिसमें आपने दोनों देशों के लोगों के बीच सम्बन्धों की नई जमीन तैयार करने, और एक-दूसरे की संस्कृतियों तथा विचारों को समझने के लिए नई राहें प्रशस्त की थीं।

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