Laat Ki Vapsi

Fiction : Novel
Author: Jagdish Chandra
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Laat Ki Vapsi

अच्छे लोगों की अच्छी दुनिया; बड़ी दुनिया जहाँ सब कुछ खुला-खुला हो, बिलकुल प्रकृति की तरह, बिलकुल ईश्वर की तरह हर वक़्त, हर किसी के लिए। ऐसी ही एक दुर्लभ दुनिया का पुनःसृजन यह उपन्यास करता है। इसके पात्र अपनी सादगी, सच्चाई और सीधे हृदय से उठे आवेगों के चलते हमें कुछ ही समय के लिए सही, एक ऐसी दुनिया में खींच लेते हैं जहाँ कोई हद ऐसी नहीं जिसे लाँघा न जा सके, कोई कुंठा ऐसी नहीं जिसे पिघलाया न जा सके और कोई आँसू इतना अड़ियल नहीं कि दिल में कील गाड़कर बैठ जाए—हर आँसू यहाँ आशीर्वाद की तरह बह जाता है। सुनील के पास भी ऐसे अनेक अनबहे आँसू थे, जो न तो तब बहे जब उसके कठोर पिता उस पर तानों के तीर चलाते थे, न तब बहे जब उसकी माँ किसी दूरस्थ अज्ञात जगह नौकरी के लिए जाते बेटे को देख बिलख पड़ी थी और न तब जब दाएँ हाथ से विकलांग होने पर उसका वायलिनवादक बनने का सपना टूटा था। वे सब आँसू सरदारा सिंह के थप्पड़ खाकर बहे; मौलाबख़्श का बनाया नक़ली हाथ पहनकर बहे; और मुद्दतों बाद वायलिन के तार छेड़कर बहे। अपनी सरल, सुगम और यथार्थवादी भाषा के ज़रिए यह उपन्यास हमें रुके हुए आँसुओं के बह जाने के साथ-साथ उन विराट हृदयों से भी मिलवाता है जो उन आँसुओं का सम्मान करते हैं, सरलता और विनम्रता को मनुष्यता की धरोहर की तरह सँजोकर रखते हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2000
Edition Year 2000, Ed. 1st
Pages 184p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Editorial Review

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Author: Jagdish Chandra

जगदीश चन्द्र

बचपन पंजाब में होशियारपुर के दो गाँवों–रलहन और घोड़ेवाहा–में गुजरा। स्कूल के दिनों में छोटे कस्बे और कॉलेज की पढ़ाई के सिलसिले में जिला सदर मुकाम होशियारपुर और जालंधर में कस्बाती जन-जीवन से इनका गहरा सम्पर्क हुआ। नौकरी की तलाश में दिल्ली आए तो कई वर्ष यहीं के हो गए।

साहित्यिक जीवन का आरम्भ आज से कोई पचास वर्ष पूर्व उर्दू कहानी ‘पुराने घर’ और पंजाबी नाटक ‘उड़ीका’ के लेखन से। पहला उपन्यास यादों के पहाड़ 1966 में प्रकाशित।

प्रकाशन : यादों के पहाड़, कभी न छोड़ें खेत, आधा पुल, मुट्ठी भर कांकर, घास गोदाम, धरती धन न अपना, नरककुण्ड में बास, टुण्डा लाट तथा लाट की वापसी (उपन्यास)। पहली रपट (कहानी संकलन)। नेता का जन्म (नाटक)।

धरती धन न अपना रूसी, उर्दू, पंजाबी एवं जर्मन में तथा आधा पुल अंग्रेजी में अनूदित।

कभी न छोड़ें खेत के नाट्य-रूपान्तर का राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमण्डल की ओर से दिल्ली में 1984 और 1985 में मंचन।

सम्मान : पंजाब सरकार का ‘शिरोमणि साहित्यकार’ (हिन्दी) 1981 सम्मान के अलावा कुछ और सरकारी व गैर-सरकारी पुरस्कार।

निधन : 10 अप्रैल, 1996

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