Ekant Ke Sau Varsh

‘एकान्त के सौ वर्ष’ ऐसा उपन्यास है जो विभिन्न आयामों के बीच एक द्वन्द्वात्मक खिंचाव बनाए रखता है। सर्वप्रथम तो यह एक हास्य उपन्यास है, सम्पूर्ण मनोरंजन, जो साहित्य के प्रति इस अवमाननाकारी रुख़ को लेकर चलता है कि साहित्य एक उम्दा खिलौना है, उसे गम्भीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। लेकिन साथ ही, यह एक बेहद संजीदा और महत्त्वाकांक्षी पुस्तक भी है जो एक ओर लैटिन अमेरिका के इतिहास के पुनर्लेखन का बीड़ा उठाती है तो दूसरी ओर अन्त में पाठक को आगाह कर देती है कि उपन्यास महज़ एक कल्पित संरचना है, एक सृजन, एक आईना नहीं जो वास्तविकता को बारीकी से प्रतिबिम्बित करता हो।
वास्तविकता को समझने और उसका वर्णन कर पाने की मनुष्य की क्षमता पर परम्परागत यथार्थवादी लेखन के भरोसे को स्वीकारने में असमर्थ, मार्केस ने एक ऐसी शैली अपनाई जो यथार्थवादी उपन्यासों की दस्तावेज़ी विधि से हटकर थी और जिसे ‘मैजिकल रीयलिज़्म’ यानी ‘जादुई यथार्थवाद’ का नाम दिया गया।
यह समझ लेना ज़रूरी है कि ‘एकान्त के सौ वर्ष’ का तथाकथित जादुई यथार्थवाद यह नहीं जतलाता कि लैटिन अमेरिकी वास्तविकता का नैसर्गिक चरित्र ही जादुई है। यद्यपि उपन्यास वहाँ के प्राकृतिक माहौल के अपूर्व आयामों और राजनैतिक जनजीवन की अतिशयोक्तियों का खुलासा अवश्य करता है। ‘अतिकल्पना’ के प्रयोग के विषय में भी कहना होगा कि ‘एकान्त के सौ वर्ष’ में यह पूरी तरह से लागू नहीं होता क्योंकि प्रत्येक वर्णित घटना का, चाहे वह कितनी भी अद्भुत क्यों न हो, एक नितान्त तर्कसंगत स्पष्टीकरण भी है। उपन्यास में घटनाएँ जब प्रस्तुत की जाती हैं तो वैसे नहीं जैसी वे वास्तव में घटित हुईं, बल्कि जैसे वहाँ के लोगों ने उन्हें अनुभव किया और समझा। इसी प्रकार अतिशयोक्तियों का प्रयोग भी, उदाहरण के लिए खोसे आर्कादियो की विलक्षण वीर्यवत्ता, कर्नल औरेलियानो बुएनदीया के बत्तीस सशस्त्र विद्रोह, बहत्तर चिलमचियाँ ख़ाली करने के लिए क़तार में खड़ीं बहत्तर बालिकाएँ—सब उस विधि के अनुरूप है जिसके चलते लोक-स्मृति आम घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा देती है। वास्तव में ‘एकान्त के सौ वर्ष’ माकोन्दो के इतिहास को उसी रूप में पेश करता है जैसा कि वह मौखिक लोक-परम्परा में दर्ज हुआ और पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद किया गया।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Publication Year | 2003 |
Edition Year | 2007, Ed. 2nd |
Pages | 376p |
Translator | Sonya Surabhi Gupta |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 3 |
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