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Posted: April 18, 2024
राजनीति को समझने के लिए कौनसी किताबें पढ़ें?
राजकमल ब्लॉग में राजनीतिक उपन्यासकार नवीन चौधरी बता रहे हैं कुछ ऐसी किताबों के बारे में जो राजनीति को भीतर से समझने में पाठकों को एक नई दृष्टि प्रदान करती हैं। हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं की इन किताबों में से कुछ उपन्यास है और कुछ कथेतर किताबें।Read more -
राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, फ़िलीस्तीन की पृष्ठभूमि में लिखी गई लेबनानी पत्रकार तलत सौकेरत की कहानी ‘पंख’। यह कहानी लेखक-पत्रकार नासिरा शर्मा की नई किताब ‘फ़िलिस्तीन : एक नया कर्बला’ में संकलित है। फ़िलिस्तीन और इजरायल की राजनीति, समाज और साहित्य पर केन्द्रित इस किताब के माध्यम से हम यहूदियों और अरब फ़िलिस्तीनियों, दोनों के हालात को समझ सकते हैं।Read more
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आंबेडकर जयंती के अवसर पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, अरुंधति रॉय की किताब ‘एक था डॉक्टर एक था संत’ का एक अंश। इस किताब के जरिए अरुंधति रॉय वर्तमान भारत में असमानता को समझने और उससे निपटने के लिए ज़ोर देकर कहती हैं कि हमें राजनैतिक विकास और मोहनदास करमचन्द गांधी के प्रभाव― दोनों का ही परीक्षण करना होगा। सोचना होगा कि क्यों भीमराव आंबेडकर द्वारा गांधी की लगभग दैवीय छवि को दी गई प्रबुद्ध चुनौती को भारत के कुलीन वर्ग द्वारा दबा दिया गया?
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हिन्दी के आँचलिक कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु के एक बेहद खास मित्र थे- बृजमोहन बाँयवाला। रेणु जी उनको बिरजू नाम से बुलाते थे। वे बिरजू को अक्सर चिट्ठी लिखा करते थे। उनकी चिट्ठियाँ राजकमल प्रकाशन से ‘चिट्ठियाँ रेणु की भाई बिरजू को’ शीर्षक से एक किताब के रूप में प्रकाशित है। जिसका संकलन बिरजू बाबू के छोटे भाई विद्यासागर गुप्ता ने और सम्पादन प्रयाग शुक्ल और रुचिरा गुप्ता ने किया है। राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, विद्यासागर गुप्ता द्वारा लिखित इस किताब की भूमिका का एक अंश।Read more
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Posted: March 30, 2024
रंग याद है : साठ सालों की दास्तान-ए-होली
बचपन में गलती से भांग घुली हुई ठंडाई पीने का किस्सा हो या अखबारों में होली के मौके पर निकलने वाले गप्प भरे चुटकियों वाले पन्ने से जुडी़ यादें… ‘रंग याद है’ शृंखला की इस कड़ी में पढ़ें, सुधा अरोड़ा की रंगयाद : “साठ सालों की दास्तान-ए-होली।" इसमें उन्होंने पिछले साठ वर्षों में देश के अलग-अलग शहरों- कोलकाता, जयपुर, इटावा, मुम्बई से बैंगलोर तक में मनाई गई होली की यादों को एक जगह समेटकर रख दिया है।Read more -
Posted: March 29, 2024
रंग याद है : वो चौबीस कैरेट वाली होली थी
‘रंग याद है’ शृंखला की इस कड़ी में पढ़ें, शैलजा पाठक की रंगयाद : “वो चौबीस कैरेट वाली होली थी”Read more -
‘रंग याद है’ शृंखला की इस कड़ी में पढ़ें, देवेश की रंगयाद : “गोबर का घोल और खेत में बैठी आकृति”Read more
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Posted: March 28, 2024
रंग याद है : चेहरे पर लगा पेंट और भईया का थप्पड़
‘रंग याद है’ शृंखला की इस कड़ी में पढ़ें, रूपम मिश्र की रंगयाद : “चेहरे पर लगा पेंट और भईया का थप्पड़”Read more -
Posted: March 27, 2024
रंग याद है : होरी का संग खेलूँ, बालम हमरो बिदेस
‘अमर देसवा’ उपन्यास के लेखक प्रवीण कुमार होली से जुड़ी यादों में अपनी टोली के साथ बचपन में की गई उन कारस्तानियों को याद कर रहे हैं, जिन्हें अंजाम देते समय वे गाँव के ओझा से लेकर मास्टर जी तक किसी को नहीं छोड़ते थे। आज उनकी टोली के सभी साथी बड़े शहरों में जाकर बस गए हैं लेकिन होली आने पर उनका मन बचपन के उन्हीं दिनों की याद में खोया रहता है। राजकमल ब्लॉग के इस अंक में पढ़ें, उनकी रंगयाद।