

Alok Dhanwa
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अलोक धन्वा
सन् 1948 में बिहार के मुंगेर ज़िले में जन्मे आलोकधन्वा की पहली कविता 'जनता का आदमी' 1972 में 'वाम' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। उसी वर्ष 'फ़िलहाल' में 'गोली दागो पोस्टर' कविता छपी। ये दोनों कविताएँ देश के वामपंथी सांस्कृतिक आन्दोलन की प्रमुख कविताएँ बनीं और अलोक बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र और पंजाब के लेखक संगठनों से गहरे जुडे़। 1973 में पंजाबी के शहीद कवि पाश के गाँव तलवंडी सलेम में सांस्कृतिक अभियान के लिए गिरफ़्तारी और जल्द ही रिहाई। 'कपड़े के जूते', 'पतंग', 'भागी हुई लड़कियाँ' और 'ब्रूनो की बेटियाँ' जैसी लम्बी कविताएँ हिन्दी और दूसरी भाषाओं में व्यापक चर्चा का विषय बनीं। वे पिछले कई वर्षों से देश के विभिन्न हिस्सों में सांस्कृतिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने छोटा नागपुर के औद्योगिक शहर जमशेदपुर में अध्ययन मंडलियों का संचालन किया और रंगकर्म और साहित्य पर कई राष्ट्रीय संस्थानों और विश्वविद्यालयों में अतिथि व्याख्याता के रूप में भागीदारी की। 2014 से 2017 तक 'बिहार संगीत नाटक अकादमी' के अध्यक्ष के रूप में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। उन्हें पहल सम्मान, नागार्जुन सम्मान, फ़िराक़ गोरखपुरी सम्मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान, भवानीप्रसाद मिश्र स्मृति सम्मान, प्रकाश जैन स्मृति सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, राहुल सम्मान और बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का विशेष साहित्य सम्मान आदि प्राप्त हुए हैं। उनकी कविताएँ अंग्रेज़ी और सभी भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं। प्रोफेसर डेनियल वाइसबोर्ट और गिरधर राठी के सम्पादन में साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित हिन्दी कविताओं के अंग्रेज़ी संकलन 'सरवाइवल' में उनकी कविताएँ संकलित हैं। इसके अलावा प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रिका 'क्रिटिकल इनक्वायरी' में अनुवाद प्रकाशित हुए हैं।